हमारे देश भारत में कपास की खेती कई सारे राज्य में होती है और किसान इन की खेती से अच्छा उत्पादन प्राप्त करते है और बंपर कमाई करते है। आज के इस आर्टिकल की मदद से हम कपास की खेती में गुलाबी सुंडी या लाल सुंडी का। नियंत्रण कैसे करे (Kapas Ki Kheti Me Gulabi Sundi Ka Upchar Kaise Kare) इन के बारे में जानेंगे।
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हमारे देश के गुजरात राज्य में कपास की खेती कई विस्तार में किसान करते है और अधिक उत्पादन भी प्राप्त करते है इन के अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्य में कॉटन की खेती की जाती है।
कपास की खेती को कई लोग सफेद सोने की खेती भी कहते है। इस साल हमारे देश भारत में 126 लाख हेक्टर विस्तार में कपास की खेती किसान ने की है । और कपास की खेती में किसान इस प्रकार जो देखभाल करे तो लाल सुंडी या गुलाबी सुंडी के प्रकोप से अपने कपास की फसल को बचा सकते है। और कम लागत में अधिक कमाई कर के किसान अपनी किस्मत चमका सकते है।
हमारे कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसान के हित में और कपास की फसल के लिए एक जरूरी बात बताई है की अगर किसान कपास की खेती में खाद, रोग, और कीट का नियंत्रण करना चाहते है तो इस परकार की बातो का ध्यान दे।
हमारे कृषि वैज्ञानिको का कहना है की यह सितंबर का महीना कपास की फसल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण महीना माना जाता है। इस महीने में कपास की फसल में अधिक मात्रा में फूल, बोली, और टिंडे अंकुरित होते है। और जो रेतीली मिट्टी है या तो ककरीली मिट्टी है इन जमीन में पोषक तत्व की कमी अधिक दिखाई देती है। इस लिया जो कपास की खेती बुवाई के बात 100 दिन की हो गई है या तो 100 दिन की होने वाली है इन फसल को जिंक, यूरिया, पानी के साथ दे और टपक विधि से जिन किसान भाई ने कपास की फसल की है वे सिंचाई में यह जिंक, और यूरिया दे सकते है।
कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से केसे बचाए और इन का नियंत्रण कैसे करे।
जो किसान की कपास की फसल 90 से 115 दिन की हो गई है इन किसान की कॉटन की फसल में गुलाबी सुंडी का प्रकोप दिखाई देने लगा है। और इन के नियंत्रण में आप प्रोफेनोफोस 50 EC/ को 800 मिलीलीटर की मात्रा में 200 लीटर पानी के साथ अच्छे से मिलघोल के स्प्रे करे। इन के अलावा क्यूनालफास 25 EC/ को 850 से 900 मिलीलीटर या तो थिओड़िकार्ब 75 WP/ का 250 से 300 हराम की मात्रा 200 लीटर पानी एक एकड़ के हिसाब से 10 से 13 दिन बाद। स्प्रे करे और इन के बाद किसान को एक ही कीटनाशक दवाई का उपयोग बार बार नहीं करना चाहिए।
जो कपास की फसल 120 दिन या इन के ऊपर की हो है इन कपास की फसल में 80 से 100 मिलीमीटर साइपरमेथ्रिन 25 EC/ अथवा 160 से 200 मिलीमीटर डेकामेथरीन 2.8 EC/ अथवा 125 मिलीमीटर फेनवलरेट 20 EC/ इन दवाई को 200 लीटर पानी में अच्छे से मिलघोल के एक एकड़ में 8 से 10 दिन के अंतर में अच्छे से छिड़काव करे।
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कपास की फसल में हरे तेल और सफ़ेद मक्खी का नियंत्रण कैसे करे?
कपास की फसल में सितम्बर महीने में हरा तेला और सफेद मक्खी का भी अटैक होता है। सफ़ेद मक्खी के उपचार के लिए आप पाइरिप्रोक्सिफ़ेन 10 EC/ को 400 मिलीमीटर का नाप लेकर 200 लीटर पानी में अच्छे से घोल मिला के छिड़काव करे और दूसरा स्प्रे 8 से 10 दिन के अंतर में स्पिरोमेसिफेन 240 SC/ को 230 मिलीमीटर का नाप लेकर 200 लीटर पानी में अच्छे से घोल मिला के अच्छे से स्प्रे करे।
कपास की फसल में इन बातो का रखे ध्यान
कपास की खेती में जब बरसात का मौसम चलता है तब चिपचिपा पदार्थ जैसे की सेण्डवित, सेलवेट् 99 या टीपोल की 60 से 80 मिलीलीटर की ग्राम का नाप लेकर 200 लीटर पानी में अच्छे से मिला के स्प्रे करे। ऐसे हल्के स्प्रे शुरुआती समय में करे और कपास की फसल में बरसाती मौसम में ज्यादा जहरीला कीटनाशक दवाई का उपयोग नहीं करना चाहिए इन जहरीले स्प्रे शुरुआती समय में करने से जो किसान के मित्र किटक होते है वे नष्ट हो जाते है और जो पतों के रस चूसने वाले कीट होते है इन की सख्या बढ़ जाती है बाद में पौधे को कई रोग से ग्रसित कर लेते है।
कपास की फसल में लगने वाले रोग का नियंत्रण कैसे करे?
कपास की फसल में जब फूल और टिंडे बनने लगते है तब कई रोग लगते है जैसे की टिंडा गलन रोग, टिंडा सड़न, पौधे के पतिया नरोड, तिड़क रोग, आदि रोग लगते है और इन रोगो का सही समय योग्य दवाई का छिड़काव कर के नियंत्रण करना चाहिए नहीं तो किसान को उपज में बहुत कम प्राप्त होगी।
पति मरोड़ रोग : जब कपास की फसल में पति मरोड़ रोग लगता है तब पौधे के पतों की नसे मोटी हो जाती है और पतों ऊपर की तरफ मूड जाती है इन के अलावा पौधे का विकास नहीं हो पता और पौधा छोटा रह जाता है। यह रोग मुख्यत्वे विषाणु के माध्यम से फैलता है। और जो सफ़ेद मक्खी है वे इस रोग को बढ़ाने का कार्य करती है। इसी लिए तो सफेद मक्खी का पूर्ण रूप से नियंत्रण करना चाहिए।
टिंडा गलन रोग : टिंडा गलन रोग का उपचार करना है तो आप को पहेले सुंडी का नियंत्रण करना होगा। इस रोग की वजे से टिंडे की इन्दर सुंडी गिर जाती है और टिंडे के अंदर का हिच्छा खाकर टिंडे को नुकसान पहुँचाती है इन के उपचार के लिए आप को पर ऑक्सीक्लोराइड या बाविस्टिन 2 ग्राम को एक लीटर पानी में अच्छे से घोल मिला के छोडकाव करना चाहिए।
जीवाणु अंगमारी रोग : यह रोग कपास की फसल में बहुत नुकशान पहुंचाता है। इन का अटैक जब भी कपास की फसल में दिखाई दे तब किसान भाई को स्ट्रेप्टोसाक्लीन का 6 से 7 ग्राम का नाप और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 600 से 800 ग्राम का नाप लेकर 170 से 200 लीटर पानी में अच्छे से घोल बना के एक एकड़ में 14 से 18 दिन के अंतर में दो से तीन अच्छे से छिड़काव करे।
पैराविल्ट रोग : कपास की फसल में यह रोग का अटैक होने से पौधे सूखने लगते है और इन रोग का जब भी अटैक दिखाई दे तब तुरंत यानि के 24 से 48 घंटो के अंदर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50%WP 500 ग्राम और मेटहेलिक्स 8%+मेंकोजेब 64% WP 500 ग्राम पानी के साथ एक एकड़ में पौधे की जड़ो में सिंचाई कर दी जिए
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आज के इस आर्टिकल में हम ने आप को कपास की खेती में गुलाबी सुंडी या लाल सुंडी का। नियंत्रण कैसे करे (Kapas Ki Kheti Me Gulabi Sundi Ka Upchar Kaise Kare) इन के बारे में अच्छे से बता दिया है।
यह आर्टिकल आप को कपास की खेती के लिए बहुत हेल्प फूल होगा यह पसंद भी आया होगा ऐसी हम उम्मीद रखते है। और यह आर्टिकल आप के किसान भाई और मित्रो को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे।
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