करेला की खेती रोग एवं उपचार (Karela Ki Kheti Rog Avm Uparchar In Hindi) : करेला की खेती हमारे देश भारत में लगभग सभी राज्य में किशान भाई करते है। करेला खाने में स्वाद हल्का कड़वा लगता है। करेला के पौधे बेल वाल पौधा है। करेला की सब्जी बना के खाने से मानव शरीर में कई सारे लाभ होते है।
कई लोग तो करेला का जूस बना के पीते है और कई लोग करेला का अचार भी बनाते है। करेला के जूस बना के सेवन करने से शरीर की कई बीमारी ठीक हो जाती हे और कई बीमारी में भारी रहत भी होती है। करेला में कई सारे औषधिक गुण मौजूद होते है। इस लिए करेला की मांग भी साल भार बाजार में अधिक रहती है।
इन ही औषोधिक गुण एवं बाजार मांग के कारण करेला की खेती आज कल किशान बड़े पैमाने में करते है और अधिक मुनाफा भी प्राप्त करते है।
करेला में कई सारे औषोधिक गुण एवं विटामिन पाए जाते है। करेला के सेवन से मधुमेह का उपचार भी किया जाता है। करेला के सेवन से कई प्रकार की बीमारी में रहत मिलती है और कई बीमारी से छुटकारा भी मिलता है।
इन में से पाचनतंत्र की कमजोरी, पेट में दर्द होना, भूख की समस्या, बुखार, गर्भाशय के रोग, इन के अलावा भी कई रोगो में करेला का सेवन कर के छुटकारा पा शाक्त है।
इन के अलावा शरीर में जब कोई गहरा घाव लगा हे तब करेला के बीज का पावडर बना के इस घाव पर लगाने से काफी रहत और इस घाव से छुटकारा भी पा शकते है।
एवं खोराक नलिका, तिल्ली विकार, एवं लिवर की बीमारी इस प्रकार के सभी बीमारी में करेला खुबज उपयोगी है।
करेला को एक औषिधिक भंडार भी कह शकते है। करेला में विटामिन एवं एंटीऑक्सीडेंट भारी मात्रा में पाए जाते है। करेला में विटामिन ए, विटामिन बी, और विटामिन सी।
इन के अलावा केरोटीन, बिटाकेरोटिन, मेग्नेशियम, लुटिन, जिंक, पोटैशियम, आयरन, और मैगनीज भी पाए जाते है। करेला खाने से ज्वर, कफ में रक्त आना, प्रमेह, जैसे रोग से छुटकारा पाया जाता है।
करेला मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है। आज के इस आर्टिकल में हम करेला की खेती रोग एवं उपचार एवं करेला की खेती के बारे में बारीक़ से बात करेंगे। जैसे की करेला की खेती किस महीने में की जाती है।
करेला की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु , तापमान, उन्नत किस्मे, कोनसा खाद, करेला की फसल में सिंचाई, करेला की उपज एवं तोड़ाई आम तो करेला की खेती की सारी माहिती इस आर्टिकल के अंत तक आप को मिल जाएगी। इस आर्टिकल में अंत तक बने रहे धन्यवाद।
करेला की खेती में किन बातो का ध्यान रखना चाहिए
- करेला की खेती आम तो सभी प्रकार की मिट्टी में कर शकते है। किन्तु करेला की बेल के अच्छे विकास अवं अच्छी पैदावार के हेतु करेला की खेती बलुई दोमट मिट्टी में करनी चाहिए। करेला की खेती जीस मिट्टी में करे उस मिट्टी का पी.एच मान 6.5 से लेकर 7.5 के बिच का होना चाहिए।
- करेला की खेती तैयारी में दो से तीन बार गहरी जुताई कर लेनी चाहिए और पाटा चलाके जमीन को समतल कर लेना चाहिए। ताकि जल भराव की समस्या ना हो। करेला की फसल में जल भराव से बहुत नुकशान होता है। इस लिए जल निकास की अच्छी वयवस्था होनी चाहिए।
- करेला की खेती बारिश एवं गर्मी दोनों मौसम में कर शकते है। करेला की फसल ठंडे जलवायु में भी अच्छी वृद्धि करती है। पर ज्यादा ठंड के कारण जो पाला पड़ता है उस पाला से करेला की फसल को नुकशान होता है। करेला के बेल 20℃ से 30℃ तक के तापमान में अच्छे से विकास करती है। और इस तापमान में फूल, फल, भी अच्छे से वृद्धि करते है।
- करेला की कई सारी प्रसिद्ध किस्मे है इन ही में से किसी भी किस्मे के बीज की बुवाई कर के किशान अच्छी पैदावार प्राप्त कर शकते है। और अच्छा मुनाफा भी कर शकते है। करेला की उन्नत किस्मे के नाम कुछ इस प्रकार के है। नूर 026, SW 810, आकास, शंकर करेला पराग, नूनहेम्स, कल्याणपुर बारहमासी, पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, इस प्रसिद्ध किस्मे के बीज की बुवाई कर के अच्छी मात्रा में उपज प्राप्त कर शकते है
- करेला की खेती साल भार या बारे माह कर शकते है। बारिश के मौसम में करेला के बीज की बुवाई जून या जुलाई माह में कर शक्ति है और गर्मी के मौसम में करेला के बीज की बुवाई जनवरी या फरवरी में कर शकते है। इन के अलावा कई विस्तार में करेला के बीज की बुवाई मार्च या अप्रैल माह में भी करते है।
- करेला की फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती कम सिंचाई में करेला के बेल अच्छी विकास करती है और उपज भी अच्छी मिलती है। करेला की खेती में नमी बनी रहे इस लिए हल्की सिंचाई करे और जल निकास का अच्छे से प्रबंध करना चाहिए।
- करेला की फसल में खाद अच्छे से सड़ा गोबर, वर्मीकम्पोष्ट, डीएपी, सिंगल सुपर फॉस्फेट, पोटाश, यूरिया, इस प्रकार के खाद देना चाहिए अच्छी उपज एवं करेला के पौधे के अच्छे विकास हे हेतु।
- करेला की खेती अगर आपने एक हेक्टर में की है तो उअपज
करेला की खेती रोग एवं उपचार
करेला की खेती में कई प्रकार के रोग एवं कीट अटेक करते है और करेला की फसल में बहुत नुकशान भी करते है। करेला की खेती में इस प्रकार के रोग एवं कीट ज्यादा तर दिखाई देते है।
रैड बीटल, पाउडरी मिल्ड्यू रोग, फल की मक्खी, एंथ्रेक्वनोज रोग, रेड पंपकिन कीट, चूर्णिल आसिता, मोजेक विषाणु रोग, जड़ गलन, इस प्रकार के रोग एवं कीट करेला की खेती में अटेक करते है
रैड बीटल और इनका उपचार
रैड बीटल : करेला की खेती में इस कीट से बहुत नुकशान होता है। यह कीट करेला के पौधे जब अंकुरित होते है तब अटेक कर देते हे और पौधे के पतों एवं जड़ दोनों को प्रभावित करते है और करेला के पौधे को शुरूआत के समय में ही नष्ट कर देते है।
उपचार : इस के नियंत्रण में टाटा कंपनी का जशन सुपर प्रोफेनोफोस 40% सायपरमेथ्रिन 4% E.C. का 30 ग्राम 16 लीटर पानी में अच्छे से मिला के छिटकाव करना चाहिए।
पाउडरी मिल्ड्यू रोग और इनका उपचार
पाउडरी मिल्ड्यू रोग : इस रोग को करेला की फसल में पौधे या बेल के पतों पर सफ़ेद रंग के जाल दिखाई देती है। यही जाल बड़ी होकर पुरे पतों पर फेल जाती है। इस रोग के कारण करेला के बेल के पतों पीले रंग के हो जाते है। और धीरे धीरे सुख के बेल से जमीन पर गीर जाती है। यह रोग एरीसाइफी एवं सिकोरेसिएटम नामक बेक्टेरिया से फैलता है।
उपचार : इस रोग के उपचार मर हम TATA का Contaf Plus हेक्साकोनाजों 5%SC W/W प्रोपालीन ग्लाइकाल 5.00 %W/W एमल्सिफायर-ए 3.00 %W/W,एमल्सिफायर-बी 3.00 %W/W 16 लीटर पानी में 40 मिली मिला के छिटकाव करना चाहिए।
जड़ व तना खानेवाली इल्ली और इनका पचार
जड़ व तना खानेवाली इल्ली : इस किट की वजे से तना में जो नया अंकुर फूटते है उसे खाते है और बेल की जड़ो में जाकर जेड भी खाते है बाद में पौधा जड़ से जरूरी खोराक नहीं ले पाता और पौधा धीरे धीरे सुख के नष्ट हो जाता है।
उपचार : इस कीट के नियंत्रण में हम 30 किलोग्राम, कार्बोफूरोन 8 किलोग्राम एक हेक्टेयर में दे शकते है सिंचाई के माध्यम से | खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु 1.25% लीटर, फिप्रोनिल या क्लोरोपाइरीफोस 20% I/C 6 लीटर एक हेक्टेयर में दे शकते है सिंचाई के द्वारा
फल की मक्खी और इनका उपचार
फल की मक्खी : इस किट की वजे से किशान को उपज में भारी नुकशान होता है। इस कीट का मुख्य कार्य है मादा मक्खी फल के ऊपरी हिच्छे में अंडे देती है और इन अंडे मेसे सुजा निकल के सीधे फल को खाते है और फल को बिगाड़ ते है।
उपचार : इस प्रकार के किट के उपचार के लिए हम नीम सीडस करनाल एकसट्रैट 50 ग्राम को 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना चाहिए। और 8 से 10 दिन के बाद 2 से 4 बार मैलाथियॉन 40 मिली+100 ग्राम गुड़ 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना चाहिए।
एंथ्रेक्वनोज रोग और इनका उपचार
एंथ्रेक्वनोज रोग : करेला की खेती में एन्थ्रेक्नोज रोग लगता है तब फसल की पतिया पर भूरे धब्बे दिखाय देते है। ए रोग कलेटोट्रीचम लगेनरियम फफूंदी के माध्यम से फैलता है। इस रोग लगाने से पातीय धीरे धीरे जमीन पर गिरने लगाती है।
उपचार : इन रोग के उपचार में हम ऑमिस्तार टॉप (AMISTAR TOP) अजॉक्सिटोबिन 18.2% डब्ल्यू / डब्ल्यू +डायफेनोकोनाजोल 11.4% डब्ल्यू / डब्ल्यू एससी 16 लीटर पानीके साथ 20 मिली मिलाके छिटकाव कीजिए। और एन्थ्रेक्नोज रोग से फसल को मुक्त करना चाहिए।
रेड पंपकिन कीट और इनका उपचार
रेड पंपकिन कीट : इस कीट की बात करे तो ए कीट ज्यादा तर कद्दू वर्गीय सब्जियों में देखने को मिलता है। इस रोग के कारण पत्तिया पर छोटी छोटी सुरंग दिखाय देती है। और सुण्डिया मिट्टी के भीतर रहती है और पौधे की जड़ो को काट ने का कार्य करते है और एक दिन बिना जड़े पौधे सूखने लगते है
उपचार : इस कीट के उपचार में हम प्रतिशत कार्बोरील 02 से 03 और प्रतिशत साईपरमेंथ्रिन 0.04 से 0.05 का छिटकाव करना चाहिए। और सुंडियों के उपचार में क्लोरपायरिफॉस का 1.5 लीटर पानी में मिला के सिंचाई के माध्यम से देना होगा। लेकिन ए उपचाई आप मुख्य फसल की बुवाई के बाद ठीक 1 या 1.5 मास के बाद
चूर्णिल आसिता और इनका उपचार
चूर्णिल आसिता : इस रोग का अटेक करेला की फसल में पतों एवं बेल के तनो के ऊपर होता है। इस रोग के अटेक से पतों एवं तनो दोनों पर हल्की सफ़ेद धूसर देखने को मिलेगी। और कुछ दिनों के बाद यही सफ़ेद धूसर धब्बे बन जाती है। इस रोग के कारण करेला की बेल से पतों धीरे धीरे जड़ ने लगती है।
उपचार : इस रोग के नियंत्रण के लिए करेला की फसल में से इस रोग ग्रसित करेला की बेल को जमीन से उखाड़ के या निकाल के मुख्य फसल से बहार जला के नष्ट कर देना चाहिए। इन के अलावा ट्राइडीमोर्फ या माइक्लोब्लूटानिल दवाई की उचित मात्रा में पानी में अच्छे से मिला के सप्ताह में दो बार अच्छे से छिटकाव करना चाहिए।
मोजेक विषाणु रोग और इनका उपचार
मोजेक विषाणु रोग : करेला की फसल में ए रोग मुख्य तवे पतियों पर दिखता है इन से शिराये स्पष्ट हो जाती है और पर्ण जो होती हे पौधे पर वे पर्ण भी धीरे धीरे नष्ट होने लगते है शिराये अवं शिरकाये मोती चमकीली और पीली हो जाती है।
जो पौधे पर नई पटिया एति है वह भी छोटी और पीली आती है गर्मी के मौसम में वर्षा से इस रोग का फैलाव बहुत तेजी से होता है जो पौधा इस रोग से संकरित हो जाता हे वह पौधे पे फल भी पीला एवं छोटा आता है इन रोग के प्रकोप से पौधे को बचाए के रखना चाहिए वार्ना फसल तेजी से ख़त्म हो शक्ती है
उपचार : के लिए आप पहले तो सफ़ेद मक्खी को नष्ट कीजिए और सफ़ेद मक्खी को नष्ट करने के लिए यलो स्टिक सारी फसल में लगानी चाहिए और डाइफेनथोरेंन 50% WP 16 लीटर पानीके साथ मिलाके छिटकाव करे और करेला की खेत में खरपतवार नियंत्रण रखे एवं इस रोग के प्रकोप वाले करेला के पौधे को जमीन से निकाल दे और जलादेना चाहिए।
जड़ गलन और इनका उपचार
जड़ गलन : इस रोग का अटेक पौधे के जड़ो में होता है। इस रोग के कारण पौधे की जड़ो गल के सड़ जाती है। जब इस रोग से पौधा ग्रस्त हो जाता है तब पौधे की जड़ो कमजोर हो जाती है बाद में पौधा जमीन में से जरूती पोषक तत्व नहीं ले पाते और धीरे धीरे पौधा सूखने लगता है और एक दिन सुख के नष्ट हो जाता है।
उपचार : इस रोग नियंतरण के लिए कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50% WP एक हेक्टर दीठ एक किलोग्राम 400 लीटर पानीके साथ घोल मिलके पर एक पौधे पीर 50मिली ग्राम पोधेकी जाड़मे सिंचाई कीजिए
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FAQ’s
Q-1. करेला की बेल कितने दिन में फल देते है ?
Answer : करेला की बेल 50 से 60 दिन के अंतर में फल देते है
Q-2. करेला की खेती में कितने दिन में पक के तुड़ाई कर शकते है ?
Answer : करेला की खेती में कम से कम से कम 80 से 90 दिन के बाद करेला तोड़ाई के लिए तैयार हो जाता है
Q-3. करेला की खेती किस माह में करनी चाहिए ?
Answer : करेला की खेती आम तो बारे माह कर शकते है। पर जनवरी या फरवरी माह एवं मार्च या अप्रैल और जून या जुलाई माह में भी करेला की खेती कर शकते है
Q-4. करेला की खेती में कौन सी खाद डालनी चाहिए ?
Answer : करेला की खेती में सड़ा हुआ गोबर, डीएपी, सिंगल सुपर फॉस्फेट, पोटाश, यूरिया इस प्रकार के खाद डाल शकते है
Q-5. करेला के बीज बुवाई के बाद कितने दिन में अंकुरित होता है ?
Answer : करेला के बीज बुवाई के बाद 6 से 12 दिन में अंकुरित हो के विकास होने लगता है और करेला के बीज को अंकुरित होने के लिए 20℃ से 30℃ तक के तापमान की आवश्यकता होती है
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