आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग को कैसे रोका जा शकता है? (Aalu Ki Fasal Me Late Blight Rog Ko Kaise Roka Ja Sakta Hai)
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किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए तरह तरह की फसलों की खेती करते है। इन में से एक सब्जी वर्गी फसल है आलू जो पूरे साल भर इन की बाजारी मांग बनी रहती है। इस लिए किसान के लिए यह आलू की फसल एक अच्छी कमाई वाली फसल है। पर इस समय आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग का प्रकोप दिखाई दे रहा है। यह लेट ब्लाइट रोग को पिछेती झुलसा रोग भी कहा जाता है। और इन का नियंत्रण करना बेहद जरूरी है नही तो उत्पादन में भी बहुत फर्क दिखेगा।
आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग को कैसे रोका जा शकता है? (Aalu Ki Fasal Me Late Blight Rog Ko Kaise Roka Ja Sakta Hai)
आलू की फसल में यह रोग पिछले महीने में पंजाब के कुछ किसान की आलू की फसल में दिखाई दिया है और इन से आलू के उत्पादन में 10 से 15 प्रतिशत तक का नुकसान हुआ है। इस लिए किसान को यह लेट ब्लाइट रोग और इस रोग से आलू की फसल को चनाने की जानकारी होनी चाहिए।
यह लेट ब्लाइट रोग क्या है?
आलू की फसल में यह लेट ब्लाइट रोग एक कवक जनित रोग है। और ये जो कवक है वे एक अविकल्पी परजीवी होता है। यह पौधे और कंद दोनो को नुकसान करता है। यह जीवाणु हवा और पानी के माध्यम से एक जगह से दूसरी जगह फेलते है। इस लिए इस रोग का प्रकोप एक खेत में है तो दूसरे खेत में भी लगने की संभावना होती है।
आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग के लक्षण
आलू की फसल में जब यह लेट ब्लाइट रोग का अटैक होता है तब आलू के पौधे पर कई प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे की आलू के पौधे पर लेट ब्लाइट रोग का अटैक होने से पत्तियों की किनारों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है। और पत्तियों के निचले स्तर पर सफेद रंग का आवरण देखने को मिलेगा। इन की बजे से पत्तियां मुरझा कर सुख जाती है। आलू के कंद पर भी इन का प्रकोप दिखाई देता है। और अधिक प्रकोप से आलू का कंद सड़ने लगता है।
आलू की फसल में यह लेट ब्लाइट रोग का नियंत्रण कैसे करें (Aalu Ki Fasal Me Late Blight Rog Ka Niyantran Kaise Karen)
आलू की फसल में यह लेट ब्लाइट रोग से बचाव के लिए किसान को आलू की अच्छी और बुवाई के समय रोग प्रतिरोधक उन्नत किस्में का चयन करना चाहिए। आलू की देर से पकने वाली किस्में में रोग प्रतिरोधक शक्ति अधिक होती है। आलू की फसल में कंद की खुदाई तब करे की जब कंद अच्छे से पक के तैयार हो ज़ाए।
आलू की फसल इस खेत में करे जिस खेत में अगले साल टमाटर की फसल नहीं की है। और आलू की बुवाई अगले साल जिस खेत में की है उस खेत में एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच की दूरी 250 से लेकर 450 गज तक रखे। इस तरह करने से आलू की फसल में यह लेट ब्लाइट रोग लगने का खतरा कम हो जाता है। इन के अलावा रासायनिक उपचार के बात करे तो मेंडीप्रोपेमिड, कलोरोथलोनिल, फ्लुजिनम या मेंकोजेब युक्त निवारक उपचारों का उपयोग किया जाता है। मेंकोजेब जैसे कवकनाशकों का उपयोग आलू की बुवाई से पहले और बीजों के उपचार के लिए भी किया जा सकता है।
सभी किसान बंधु को हमारी एक गुजारिश है की आलू की फसल में जब भी आप रासायनिक खाद डाले या दवाई का छिड़काव करे तब आप अपने नजदीकी कृषि विभाग की मुलाकात ले और इन की सलाह मुजब और इन की देखरेख में ही आलू की फसल में इन का इस्तेमाल करे।
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आज के इस आर्टिकल में हम ने आप को आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग को कैसे रोका जा शकता है? (Aalu Ki Fasal Me Late Blight Rog Ko Kaise Roka Ja Sakta Hai) इन के बारे में अच्छी जानकारी बताई है। यह आर्टिकल आप को सेम की खेती के लिए बहुत हेल्फ फूल होगा और यह आर्टिकल आप को पसंद भी आया होगा ऐसी हम उम्मीद रखते है। और इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा किसान भाई और अपने मित्रो को शेयर करे।
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