आलूबुखारा की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कर के किसान कैसे अमीर बने

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आलूबुखारा (plum) स्वास्थवर्धक एक रसभरा और वृक्षीय फल है आलूबुखारा की वैज्ञानिक तकनीक से खेती (Alubukhra Ki Vaigyanik Taknik Se Kheti Karen) तो अधिक उपज के साथ अच्छी कमाई भी कर शकते है।

Alubukhra Ki Vaigyanik Taknik Se Kheti Karen

आलूबुखारा (alubukhara) की खेती हमारे देश भारत में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, राज्य में किसान बड़े पैमाने में करते है और अच्छी उपज भी प्राप्त करते है।

आलूबुखारा की उन्नत किस्मे की बुवाई पहाड़ी विस्तार एवं मैदानी विस्तार में भी अच्छी विकास करती है और अच्छी पैदावार भी देते है। इस आलूबुखारा को प्लूम, प्लम, अलुचा नाम से भी कई लोग जानते है।

आलूबुखारा में विटामिन सी, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्वोहाडट्रेट, आयरन, फास्फोर, विटामिन ए, ऊर्जा, पानी, आदि पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते है जो मानव शरीर को हेल्दी रखने में मदद मिलती है।

आलूबुखारा का फल पक जाने के बाद ताजा खाया जाता है। आलूबुखारा (alubukhara) का उपयोग चटनी, जैली, और जैम में करते है। आलूबुखारा के बीज भी बहुत उपयोगी है। इन में से सौन्दर्य प्रसाधनों और दवाई भी बनाई जाती है।

आलूबुखारा की बागबानी से अधिकतम एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए आलूबुखारा की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करे। आज के इस आर्टिकल में हम आलूबुख़ारी की खेती के लिए किसी मिट्टी और जलवायु की आवश्यकता होती है।

आलूबुखारा की उन्नत किस्मे कौन कौन सी है और आलूबुखारा खेती को अनुरूप वातावरण एवं तापमान बात करे तो आलूबुखरा की खेती के बारे में आप के मन में जो भी सवाल है इन सारे सवाल के जवाब आप को इस आर्टिकल के अंत तक मिल जाएंगे।

Table of Contents

आलूबुखारा की खेती मिट्टी की पसंदगी

आलूबुखारा की खेती आम तो सभी प्रकार की मिट्टी में कर शकते है पर इन के पेड़ की अच्छी विकास और अधिक उपज के लिए आलूबुखारा के पौधे अच्छी उपजाव मिट्टी में रोपना चाहिए।

आलूबुखारा की खेत तैयारी में अच्छे से दो से तीन बार गहरी जुताई करने के बाद पाटा चला के जमीन को समतल कर लेना चाहिए। ताकि बाद में जल भराव की समश्या टल जाए।

आलूबुखारा की खेती में जल निकास अच्छे से होना चाहिए। इन की खेती पहाड़ी विस्तार में और मैदानी विस्तार में की जाती है।

आलूबुखारा की खेती के लिए अनुरूप जलवायु शीतल एवं गर्म अच्छा माना जाता है। इन की खेती समुद्र सपाटी से 950 से 2550 मीटर वाले विस्तार में होती है और बसन्त ऋतु में पड़ने वाला पाला इन के लिए अच्छा होता है।

आलूबुखारा की उन्नत किस्मे

आलुबुखारा की खेती के लिए आज के ज़माने में कई सारी प्रसिद्ध किस्मे है लेकिन हम आप को कुछ ऐसी किस्मे की जानकारी देंगे की इन किस्मे के बीज या पौधे की रोपाई कर के अच्छी उपज ले शकते है।

आलूबुखारा की खेती विविध विस्तार में विविध किस्मे की करनी चाहिए। समुद्र सपाटी से 2000 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले विस्तार में सलिसिनावर्ग इस प्रकार की किस्मे की बुवाई करनी चाहिए जैसे की फर्स्ट प्लम, न्यू प्लम, सेन्टारोजा आदि किस्मे है।

इन के अलावा डोमेस्टिकावर्ग की किस्मे में ग्रीन गेज, प्रसिडेन्ट, ट्रान्समपेरेन्ट गेज, आदि किस्मे है और समुद्र सपाटी से 1000 मीटर की उचाई वाले विस्तार के लिए फंटीयर में तीतरों, रैड ब्यूट, जामुनी, अलूचा परपल, लेट यलो आदि है।

रैड ब्यूट : आलूबुखारा की यह वैराइटी के फल मध्यम आकार का होता है, इस फल का रंग ग्लोब लाल और चमकीला होता है, इन के गुदा पीले रंग का और आसानीसे पिघल जाता है।

इन वैराइटी के फल खाने में मीठा और सुगंधीदार होता है। इस का गुदा बीज के साथ चिपके रहता है, यह किस्मे सैंटारोजा से पहेले 14 दिन में पक के तैयार हो जाती है इन के फल मई महीने में 15 दिन के बाद पक जाती है।

फंटीयर : आलूबुखारा की यह वैराइटी के फल वजन में भारी होती है और आकार में बड़ी साइज के होते है, इस फल का रंग लाल बैंगन होता है, और गुदा भी गहरा लाल रंग का होता है।

इस वैराइटी के फल खाने में स्वादिष्ट और मीठा होता है, इस फल की सुगंध भी अच्छी आती है और इस के फल कई दिन तक ताजा और अच्छा रख शकते है।

टैरूल : आलूबुखारा की यह वैराइटी के फल साइज में माध्यम से थोड़ा बड़े होते है, इस फल का आकर गोल और पीले रंग है, इन का फल खाने में स्वादिष्ट और पिघल ने वाला होता है।

इस वैराइटी के फल सुगंधीदार और बीज से चिपका होता है। यह सैंटारोजा से 7 दिन बाद और जुलाई महीने में 14 दिन बाद पक के तैयार हो जाते है इस वैराइटी के पेड़ पर पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होती है।

आलूबुखारा के परागण के लिए

आलूबुखारा की कई किस्मे ऐसी भी हे जो पराग से फल नहीं बना शक्ति इस लिए इन किस्मे को परागण की जरूरत पड़ती है। जब आप आलूबुखारा के पौधे की रोपाई करते है तब इस परागणकर्ता पौधे भी लगाना चाहिए।

आलूबुखारा (alubukhara) की सतसुमा वैराइटी से अच्छी गुणवत्ता वाले और अधिक मात्रा में फल प्राप्त करने के लिए आप को सेन्टारोजा वैराइटी के पौधे बगीचा में लगाना चाहिए।

आलूबुखारा की खेती में अच्छी परागण के लिए आप कई जगह पर फूल के पौधे लगाना चाहिए और आलूबुखारा के बड़े पेड़ पर कई जगह मधुमक्खी के बक्से भी लगा शकते है।

आलूबुखारा के पौधे की रोपाई कैसे करे?

आलूबुखारा के पौधे की रोपाई नवंबर महीना और फरवरी महीने के बिच का समय अच्छा माना जाता है। आलूबुखारा की खेती में पौधे रोपाई के लिए पहेले 5 X 5 या 6 X 6 मीटर की दूरीपर खड्डे खोद के तैयार करे।

आलूबुखारा के खड्डे 1 X 1 X 1 मीटर आकर के होने चाहिए बाद में इन खड्डे में सड़ी गोबर की खाद मिट्टी में अच्छे से मिला के इन खड्डो को भर देना चाहिए।

इन के बाद इन खड्डो की हल्की सिंचाई भी कर ले ताकि खड्डे की मिट्टी की नमी बनी रहे बाद में नर्सरी से अच्छे से जास परख के आलूबुखारा के पौधे खरीद के इन खड्डो में रोपाई करे फिर एक सिंचाई अवश्य करे।

आलूबुखारा की खेती में पौधे या पेड़ की सिंचाई कब करे?

आलूबुखारा की बागबानी में सिंचाई योग्य समय पर करनी चाहिए ताकि पौधे पेड़ की अच्छी विकास होती रहे और उपज भी अधिक प्राप्त होती रहे।

आलूबुखारा की खेती में जब फूल आते है तब सिंचाई पर ध्यान देना चाहिए ताकि कम फूल जड़े और अधिक फूल में से फल बने इन की बागबानी में गर्मी के मौसम में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

आलूबुखारा की खेती में 2 से 4 दिन के अंतर में सिंचाई करनी चाहिए और बारिश के मौसम में सिंचाई जरूरियात मुजब करे बारिश के मौसम में सिंचाई की बहुत जरुरत नहीं होती।

आलूबुखारा के पेड़ की कटाई चटाई और सधाई

आलूबुखारा के पौधे जब विकास करने लगते है तब इस पौधे या पेड़ के अच्छे आकर के लिए योग्य समय पर इन की कटाई चटाई करनी चाहिए।

आलूबुखारा की सेलिसिना वर्ग की वैरायटी उपज की तरफ कम और आजु बाजु में अधिक विकास करती है। इस लिए ऐसी वैराइटी के पौधे पेड़ की योग्य समय पर कटाई चटाई करनी चाहिए।

आलूबुखारा के बागबानी में खाद कितना और कब डाले।

आलूबुखारा के बागबानी में पौधे या पेड़ की अच्छी विकास और अधिक उपज के लिए खाद डालना चाहिए जैसे की सड़ी गोबर की खाद, एसएसपी, यूरिया, म्यूरेट ऑफ़ पोटाश इस प्रकार के खाद देना चाहिए ,

आलूबुखारा (alubukhara) के पौधे बुवाई के बाद 1 से 2 साल तक के पौधे हो जाने के बाद प्रत्येक पौधे को सड़ी गोबर की खाद 13 से 15 किलोग्राम, एसएसपी 250 से 300 ग्राम, यूरिया 160 से 200 ग्राम, म्यूरेट ऑफ पोटाश 160 से 300 ग्राम देना चाहिए।

इन के बाद आलूबुखारा के पौधे जब जब बड़े होते जाते है तब इन के माप भी बढ़ता जाता है। इन के पौधे 5 से 6 साल के हो जाते है तब इन को गोबर की खाद 25 से 30 किलोग्राम, एसएसपी 900 से 1000 ग्राम, यूरिया 950 से 1000 ग्राम, एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 750 से 800 ग्राम प्रत्येक पौधे को डाल ना चाहिए।

आलूबुखारा की बागबानी में रोग एवं कीट नियंत्रण

आलूबुखारा की बागबानी में जब पेड़ पर फल आते है तब इन फल पर और पेड़ पर कई रोग एवं कीट अटैक करते है और इस का नुकशान किसान को भुगतना पड़ता है।

आलूबुखारा की बागबानी में ज्यादा तर इस प्रकार के रोग एवं कीट दिखाई देते है और अटैक करते है जैसे की माहू (लीफ कर्ल एफिस), जड़ गलन रोग (रूट रॉट), शल्क (स्केल), दाग धब्बे, तना छेदक कीट (स्टेम बोरर), सिलवर लीफ कैंकर, आदि मुख्य कीट एवं रोग है।

माहू (लीफ कर्ल एफिस) : इस कीट के वजे से पौधे का विकास या पौधे की वृद्धि अटक जाती है। जब इस कीट का अटेक पौधे या फसल में होता है तब पौधे पर माहु के माल के कारण पौधा चिकना हो जाता है

नियंत्रण : इस कीट के उपचार में हम टाटा कंपनी का एपलोड बूप्रोफेज़िन 25% SC 16लीटर पानी में 35 मिलीग्राम मिलाके छिड़काव 15 दिन के अंतराल में दो बार छिड़काव कीजिए।

जड़ गलन रोग (रूट रॉट) : इस रोग का अटेक पौधे के जड़ो में होता है। इस रोग के कारण पौधे की जड़ो गल के सड़ जाती है। जब इस रोग से पौधा ग्रस्त हो जाता है तब पौधे की जड़ो कमजोर हो जाती है बाद में पौधा जमीन में से जरूती पोषक तत्व नहीं ले पाते और धीरे धीरे पौधा सूखने लगता है और एक दिन सुख के नष्ट हो जाता है।

नियंत्रण : इस रोग नियंतरण के लिए कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50% WP एक हेक्टर दीठ एक किलोग्राम 400 लीटर पानी के साथ घोल मिला के पत्येक पौधे को 50 मिली ग्राम सिंचाई के माध्यम से देना चाहिए। और इस बीमारी से पौधे को मुक्त करना चाहिए।

शल्क (स्केल) : इस किट के अटैक से पौधे के तने और शाखा एवं पतों पर घुण्डियों दिखाई देती है और ए घुण्डियों में इन के छोटे छोटे चुजू होते है जे पतों का रस चुचने का कार्य करते है।

नियंत्रण : इन के रोकथाम में लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड का 650 ग्राम का माप 200 लीटर पानी के साथ अच्छे से घोल मिला के छिड़काव करना चाहिए।

दाग धब्बे : इस बीमारी की पैथोजेनिक बीमारी भी कहते है। इस का अटेक मुख्य तवे पौधे के पतों पर होता है। इस के कारण पौधे के पतों पर छोटे छोटे छिद्र और पतों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है। और धीरे धीरे पौधे के सारे पते गीर के नष्ट हो जाते है

नियंत्रण : इस रोग के नियंतरण में हम दीथेन एम 45 0.3 % एवं कोटफ 10 मि.ली 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए।

तना छेदक कीट (स्टेम बोरर) : इस कीट का मुख्य कार्य है नई तने और नई शाखा पर अटैक करना और इन में छेद करते है। तने में सुरंग बनाते है और धीरे धीरे इन तने को खा कर एक दी इन तने को नष्ट कर देते है।

यह किट तने में सुरंग बना के खाते है तब इस सुरंग के आस पास गुलाबी रंग की छोटी छोटी गोल आकर का पदार्थ दिखाई देते है इन का उपचार जल्द ही करे नहीं तो एक दिन पूरा पेड़ नष्ट हो जाता है।

नियंत्रण : इन के नियंत्रण के लिए जो तने और शाखा पर इस का अटैक दिखाई दे इन तने या शाखा को पेड़ या पौधे से काट के जला देना चाहिए।

इन के अलावा रासायनिक दवाई जैसे की क्विनल्फास या फोसालोन या क्लोरपाईरिफास या इन्डोसल्फान को 20 लीटर पानी में अच्छे से मिलघोल के छिड़काव करे और इन छेद को भीनी मिट्टी से बंद कर देना चाहिए।

फल छेदक इली : इस फलिया छेदक इली पौधे पर लगने से पौधे की पतों एवं फल दोनों को नुकशान पहोचाता है। और फलिया को अधिक नुकशान पहुंचाते है

नियंत्रण : इस हरी इली के उपचाई में हम एक्यूरेट कम्पनी का अटैक प्लस इमामेकेटिन बेंजोएट टेक्नीकल्स 2.00% W/W बलायक 33.00% W/W मिथाइल पाईरोलीडॉन 28.70% W/W 20 से 25 ऐ मेल 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए।

आलूबुखारा की उपज और तोड़ाई

आलूबुखारा के फल अच्छी गुणवत्ता और अच्छे स्वाद के लिए इन के फल पेड़ पर ही पक जाने के बाद इन फल की तुड़ाई करनी चाहिए। आलूबुखारा के फल तुड़ाई के बाद स्वाद में कोई बड़ोतरी नहीं होती है।

इन के फल जब पूरी तरह पेड़ पर पक जाते है तब इन की तुड़ाई कर के इन हे पेकिंग कर ने के बाद दूर दूर तक मार्किट और शहर में भेजा जाता है।

आलूबुखारा की बागबानी की अच्छी तरह से देखभाल करे तो आलूबुखारा के प्रत्येक पेड़ से लगभग 60 से 90 किलोग्राम तक की उपज (पैदावार) किसान प्राप्त कर शकता है।

इस तरह पैदावार प्राप्त होने के बाद इन का मार्किट दाम भी अच्छा मिलता है इस लिए आलूबुखारा (alubukhara) की खेती कर के किसान अपनी किस्मत बदल शकता है।

अन्य भी पढ़े :

FAQ’s

आलूबुखरा का पौधा कितने साल के बाद फल देते है?

आलूबुखारा का पौधा बुवाई के बाद 2 से 4 साल बाद फल देना शुरू कर देता है।

आलूबुखारा का पौधा कैसे होता है?

आलूबुखारा का पौधे के पतिया बेर के पौधे जैसी दिखती है और इन की खेती पहाड़ी विस्तार एवं मैदानी विस्तार में आसानी से कर शकते है और अच्छी पैदावार भी किसान प्राप्त कर शकते है।

आलूबुखारा की उन्नत किस्मे कितनी है?

आलूबुखारा की कई साडी उन्नत किस्मे है जैसे की फंटीयर में तीतरों, रैड ब्यूट, जामुनी, अलूचा परपल, लेट यलो, ग्रीन गेज, प्रसिडेन्ट, ट्रान्समपेरेन्ट गेज इन में से रैड ब्यूट, फंटीयर, टैरूल किस्मे बहुत लोकप्रिय है।

आलूबुखारा में कौन कौन से विटामिन और पोषक तत्व होते है?

आलूबुखारा में विटामिन सी, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्वोहाडट्रेट, आयरन, फास्फोर, विटामिन ए, ऊर्जा, पानी, आदि पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते है।

आलूबुखारा की खेती किस राज्य में होती है?

आलूबुखारा की खेती हमारे देश भारत में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, राज्य में किसान बड़े पैमाने में करते है।

सारांश

यदि यह आलूबुखारा की वैज्ञानिक तकनीक से खेती (Alubukhra Ki Vaigyanik Taknik Se Kheti Karen) की जानकारी आप को बेहद पसंद आई हो और इस आर्टिकल से आप संतुष्ट है ऐसी उम्मीद रखते है।

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नमस्कार किसान मित्रो, में Mavji Shekh आपका “iKhedutPutra” ब्लॉग पर तहेदिल से स्वागत करता हूँ। मैं अपने बारे में बताऊ तो मैंने अपना ग्रेजुएशन B.SC Agri में जूनागढ़ गुजरात से पूरा किया है। फ़िलहाल में अपना काम फार्मिंग के साथ साथ एग्रीकल्चर ब्लॉग पर किसानो को हेल्पफुल कंटेंट लिखता हु।

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