चुकंदर की खेती से कमायें करोडो रूपए |Chukandar Me Kon Sa Rog Hota He

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चुकंदर में कौन सा रोग होता है ? Chukandar Me Kon Sa Rog Hota He : चुकंदर को हम बिट के नाम से भी जानते है। इस चुकंदर मिट्टी के अंदर विकास करते है। चुकंदर देखने में गहरा गुलाबी रंग के होते है। चुकंदर का हम स्लास बना के खाने में उपयोग लेते है और कई लोग तो इस चुकंदर का ज्यूस भी बना के पीते है।

चुकंदर में कई सारे गुण मौजूद होते है। वे मानव शरीर में खुबज उपयोगी है। चुकंदर के इन ही गुणों के कारण चुकंदर की साल भार बाजार में बहुत मांग रहती है। अगर मानव शरीर में रक्त (खून) नी कमी है तो चुकंदर का सेवन करने से वे रक्त कमी को ठीक करने में भी उपयोगी है।

इस के अलावा हृदय (दिल) को स्वस्थ, अनीमिया, कैंसर, पाचन शक्ती मजबूत बनाता है, पित्ताशय विकारों, एनर्जी लेवल बढ़ाने में मददगार होता है।

बवासीर, स्किन के लिए फायदेमंद होता है, गुर्दे के विकार, याददाश्त बढ़ाते है। इन सभी बीमारी में चुकंदर खुबज उपयोगी है और इन ही कारण आज कल बाजार में चुकंदर की मांग बढ़ती ही जाती है।

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चुकंदर की खेती में अच्छी उपज के हेतु इन बातो का ध्यान रखे

  • चुकंदर के पौधे की अच्छी विकास के हेतु और अच्छी उपज (पैदावार) प्राप्त कर ने के लिए चुकंदर की खेती बलुई दोमट मिट्टी में करनी चाहिए।
  • चुकंदर की खेत तैयारी में एक से तीन बार गहरी जुताई करनी चाहिए और गहरी जुताई के बाद पाटा चलाके जमीन को समतल कर लेना चाहिए
  • चुकंदर की फसल में नमी रहनी चाहिए इस के लिए चुकंदर की खेती ठंडे विस्तार में ज्यादा करते है।
  • चुकंदर की खेती में ज्यादा सिंचाई या ज्यादा बारिश की जरूरत नहीं होती। चुकंदर की फसल कम सिंचाई में पक के तैयार हो जाती है।
  • चुकंदर की कई प्रसिद्ध किस्मे है। MSH 102, डेट्रॉइट डार्क रेड, क्रिमसन ग्लोब, अर्ली वंडर, मेगना पोली, मिस्त्र की क्रॉस्बी, योगिया, रूबी रानी, लाल एस, रोमनस्काया, इन के अलावा और भी कई प्रसिद्ध किस्मे है चुकंदर की इन किस्मे की बुवाई कर के अच्छी उपज किशान कर शकते है।
  • चुकंदर की खेती ज्यादा तर अक्टूबर माह या तो नवंबर माह में की जाती है। और इस समय को चुकंदर की खेती के लिए उचित माना जाता है।
  • चुकंदर की खेती के लिए ठंडा जलवायु उचित माना जाता है। और तापमान 15℃ से 20℃ तक का अच्छा एवं इन तापमान में चुकंदर की फसल अच्छे से विकास करती है
  • चुकंदर की खेती अगर आप ने एक हेक्टर में करनी है तो 15 से 16 किलोग्राम बीज की मात्रा काफी है।
  • सुकंदर की खेती में बीज से बीज की दुरी 15 से केलर 20 सेंटीमीटर रख शकते है।
  • चुकंदर की फसल में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। चुकंदर की खेती में सिंचाई ज्यादा करने से या ज्यादा बारिश के कारण चुकंदर के जड़ सड़ जाती है इस लिए चुकंदर की खेती में जरूरी मुजब सिंचाई करनी चाहिए।
  • चुकंदर के बीज बुवाई के बाद चुकंदर 60 दिन में तैयार होने लगती है और 90 दिन में चुकंदर की फसल पक के तैयार हो जाती है।

चुकंदर में कौन सा रोग होता है ?

चुकंदर की खेती में कई प्रकार के रोग एवं कीट अटेक करते है और इस रोग एवं किट के अटेक से चुकंदर की फसल में बहुत नुकशान भी होता है।

चुकंदर की खेती में जब भी कोई रोग एवं कीट का अटेक दिखाई दे तब योग्य दवाई का छिटकाव कर के चुकंदर के पौधे को इस रोग एवं कीट से मुक्त करना चाहिए।

चुकंदर के पौधे की अच्छी विकास एवं चुकंदर की अच्छी वृद्धि या पैदावार के लिए। चुकंदर की फसल में ज्यादा तर इस प्रकार के रोग एवं कीट दिखाई देते है। माहू, पतों पर धब्बा,

  • माहू : चुकंदर की फसल में इस कीट के अटेक से बहुत नुकशान होता है। इस कीट दिखने में काला रंग के या भूरे रंग के होते है। इस कीट का कार्य है चुकंदर के पौधे के पतों से रस चूस लेते है और पतों को ज्यादा नुकशान पहुंचाता है। और पौधे का विकास भी रूक जाता है। और पौधे पर माहु के मल के कारण पौधा चिकना हो जाता है।
  • उपचार : माहु इस रोग के उपचार के लिए टाटा कंपनी का एपलोड बूप्रोफेज़िन 25% SC 16लीटर पानी में 35 मिलीग्राम मिलाके छिड़काव करना चाहिए। और 15 दिन के अंतराल में दो बार छिड़काव करना चाहिए और चुकंदर की फसल को इस कीट के अटेक से मुक्त करना चाहिए।
  • इस के अलावा भी एक उपचार है। बाजार में पीला रंग के कागज़ मिलते है और इस कागज़ में चिकना पदार्थ लगा होता है इस चिकने पदार्थ के कारण जब माहू के कीट एक पौधे से दूजे पौधे पर उड़ के जाते है तब इस पीले कागज से आकर्षित होते है और इस कागज़ के चिकने पदार्थ के कारण कीट चिपक जाते है और धीरे धीरे नष्ट हो जाते है।
  • पतों पर धब्बा : चुकंदर की फसल में इस रोग को प्रमुख रोग माना जाता है। इस रोग के कारण चुकंदर के पतों बेडन्यू या भूरे रंग के छोटे छोटे धब्बे दिखाई देते है। और ए छोटे छोटे धब्बे थोड़े दिन में पुरे पतों पर हो जाते है और पतों को सूखा के नष्ट कर देते है। धीरे धीरे पौधे से पतों जमीन पर गीर जाते है। इस बीमारी की पैथोजेनिक बीमारी भी कहते है। इस का अटेक मुख्य तवे पौधे के पतों पर होता है। इस के कारण पौधे के पतों पर छोटे छोटे छिद्र और पतों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है।
  • उपचार : चुकंदर की फसल में इस रोग से प्रभावित पौधे को जमीन से मिकाल दीना चाहिए और इस रोग ग्रस्त पौधे को नष्ट कर देना चाहिए। इन के अलावा इस रोग के नियंतरण में हम दीथेन एम 45 0.3 % एवं कोटफ 10 मि.ली 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए।
  • जड़ गलन : इस रोग का अटेक पौधे के जड़ो में होता है। इस रोग के कारण पौधे की जड़ो गल के सड़ जाती है। जब इस रोग से पौधा ग्रस्त हो जाता है तब पौधे की जड़ो कमजोर हो जाती है बाद में पौधा जमीन में से जरूती पोषक तत्व नहीं ले पाते और धीरे धीरे पौधा सूखने लगता है और एक दिन सुख के नष्ट हो जाता है।
  • नियंत्रण : इस रोग नियंतरण के लिए कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50% WP एक हेक्टर दीठ एक किलोग्राम 400 लीटर पानी के साथ घोल मिला के पत्येक पौधे को 50 मिली ग्राम सिंचाई के माध्यम से देना चाहिए। और इस बीमारी से पौधे को मुक्त करना चाहिए।

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FAQ’s

Q-1. चुकंदर की खेती कैसे और कब करनी चाहिए ?

Answer : चुकंदर की खेती बीज बुवाई कर के की जाती है और इस की खेती अक्टूबर माह में या नवम्बर माह में करनी चाहिए

Q-2. चुकंदर की फसल कितने दिन में पक के तैयार हो जाती है ?

Answer : चुकंदर की फसल कम समय में पक के तैयार हो जाती है और ज्यादा से ज्यादा 90 या 110 दिन में पक के तैयार हो जाती है

Q-3. चुकंदर की फसल में अनुकूल तापमान कौन सा है ?

Answer : चुकंदर की फसल में अनुकूल तापमान 15℃ से 20℃ तक का तापमान अच्छा माना जाता है

Q-4. चुकंदर की फसल में खाद कौन कौन सा डालना चाहिए ?

Answer : चुकंदर की फसल में अच्छे से सड़ा हुआ गोबर, नाइट्रोजन, फास्फोरस, एवं पोटाश खाद डालना चाहिए

Q-5. चुकंदर खाने से कौन कौन से फायदे होते है ?

Answer : चुकंदर खाने से हृदय (दिल) को स्वस्थ, अनीमिया, कैंसर, पाचन शक्ती मजबूत बनाता है, पित्ताशय विकारों, एनर्जी लेवल बढ़ाने में मददगार होता है, बवासीर, स्किन के लिए फायदेमंद होता है इस तरह के कई सारे फायदे होते है

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नमस्कार किसान मित्रो, में Mavji Shekh आपका “iKhedutPutra” ब्लॉग पर तहेदिल से स्वागत करता हूँ। मैं अपने बारे में बताऊ तो मैंने अपना ग्रेजुएशन B.SC Agri में जूनागढ़ गुजरात से पूरा किया है। फ़िलहाल में अपना काम फार्मिंग के साथ साथ एग्रीकल्चर ब्लॉग पर किसानो को हेल्पफुल कंटेंट लिखता हु।

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