किसान इस तकनीक से अरहर (तुअर) की खेती करेंगे तो उपज तो अधिक होगी पर मुनाफा भी बंपर होगा

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नमस्ते किसान दोस्तो आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानेंगे की किसान इस तकनीक से अरहर की खेती (Kisan is Taknik Se Arhar Ki Kheti Kare) करेंगे तो उपज तो अधिक होगी पर मुनाफा भी बंपर होगा।

Kisan is Taknik Se Arhar Ki Kheti Kare

किसान भाइयो अरहर खरीफ मौसम में खेती की जाने वाली प्रमुख दलहन फसलों में शामिल है। इसे तुअर दाल के नाम से भी जाना जाता है। दोस्तो दलहनी फसलों में अरहर का विशेष स्थान है।

तुअर दाल भारत में सबसे अधिक खाए जाने वाले मुख्य खाद्य पदार्थों में से एक है। क्योकि इसमें पोटेशियम, कार्बोंहाईड्रेड, प्रोटीन, आयर्न, कैल्शियम और खनिज तत्व काफी मात्रा मे पाए जाते है।

इश्कि इतिहास की बात करे तो भारत को इसकी उत्पत्ति का प्राथमिक केंद्र माना जाता है। माना जाता है कि अरहर की खेती भारत में 3 हजार साल पहले से की जा रही है। और पश्चिम अफ्रीका को उत्पत्ति का दूसरा प्रमुख केंद्र माना जाता है।

भारत में अरहर की खेती कई राज्यों में की जाती है। जैसे महाराष्ट्र ,उत्तरप्रदेश ,मध्य्प्रदेश ,कर्णाटक ,आंध्रप्रदेश और गुजरात में इशकी खेती होती है। देखा जाये तो अरहर की खेती सबसे अधिक महाराष्ट्र में की जाती है।

अरहर (तुअर) की खेती किसान इस तकनीक से करेंगे तो उपज तो अधिक होगी पर मुनाफा भी बंपर होगा।

अरहर की खेती का अच्छा समय है जून के प्रथम सप्ताह से जुलाई के अंतिम सप्ताह के बीच मे होता है। क्योकि ईश दोरान मौसम काफी अच्छा होता है। और ईश वख्त बारिस का अच्छा मौसम होता है। बारिस के मौसम मे अरहर का पौधा जल्दी से वृद्धि पामता है। और आपको अधिक मुनाफा होता है।

तापमान की बात करे तो ,इश्केलिए मध्यम तापमान की आवशक्यता होती है। न्यूनतम तापमान 15℃ से 16℃ तक होना चाहिए यह कम तापमान पर भी अच्छी करेगा.अधिकतम तापमान 35℃ से 36℃ होना चाहिए। इससे ज्यादा होने पर भी काम चल जायेगा। लेकिन जब फूल खिल रहे होते तब 20 से 25 तक का तापमान अच्छा माना जाता है।

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अनुकूल जमीन की पसंद कैसे करे

किसान भाइयो अगर हम अरहर की बुआई के लिए जमीन की बात करें। काली मिट्टी ,काली दोमट मिट्टी, हल्की दोमट मिट्टी, मध्यम भारी दोमट मिट्टी, भूरी दोमट मिट्टी, औ रेतीली दोमट मिट्टी મેં चिकनी मिट्टी को सोडके सभी मिट्टी में अरहर की खेती की जा सकती है। लेकिन अरहर की खेती सबसे अच्छी काली मिट्टी में होती है।

किसान भाइयो आपकी मिट्टी का पी. एच. मान 6.0 से 6.5 के बिच का होना बेहद जरुरी है। पीएच माप का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि आपकी मिट्टी अच्छी है या खराब है।

यदि आपकी मिट्टी का पी. एच. मान कम है तो मिट्टी को बेहतर बनाने के लिए उसमें चूना मिलाएं। अदि आपकी मिट्टी का पी. एच. मान अधिक है तोडालकर मिट्टी में सुधार किया जा सकता है।

यदि आप की मिट्टी अम्लीय भूमि की पी. एच. मान उदासीन स्तर पर पहुँचाने के लिए लगभग 30-40 क्विंटल चूना प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। उसे बोआई से पहले छिट कर खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए।

यदि मिट्टी क्षारीय है तो उसमें कार्बनिक पदार्थ मिलाये जाते हैं। कार्बनिक पदार्थ अम्ल छोड़ते हैं, इसलिए मिट्टी प्राकृतिक रूप से तटस्थ हो जाती है। दलहन फसलों के लिए 50-100 किलोग्राम जिप्सम पाउडर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए।

अरहर की उन्नत किस्मे

भूमि का प्रकार, बोन का समय,जलवायु आदि के आधार पर अरहर की जातियों का चुनाव करना चाहिए।

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  • इस हाइब्रिड किस्म की बात करे तो खरीफ, रवि और जायद मौसम में बुआई के लिए उपयुक्त है।
  • खरीफ मौसम में बीज का दर 20 से 22 कि.ग्रा प्रति एक हैक्टर
  • अंतरफसल के लिए दर प्रति एक हैक्टर 15 से 20 की.ग्रा होना चाहिए।
  • इसकी अवधि की बात करे तो 164-184 दिन होती है। उत्पादन की बात करे तो प्रति हेक्टर में 25 से 28 क्विंटल होता है।
  • अरहर की यह किस्मे मुख्यत्वे मध्यप्रदेश में उपयोग की जाती है।

मोती अरहर

  • मोती अरहर पंचगंगा कंपनी की वेराइटी आती है और यह किस्म शीघ्र पककर तैयार होने वाली वेराइटी है।
  • इसके दाने का रंग हलके भूरे रंग का होता है।
  • इसकी अवधि की बात करे तो 180-200 दिन होती है।
  • यह देर से पकने वाली वेराइटी है। बीज बोने का दर प्रति एक हैक्टर 15 से 18 की.ग्रा तक होता है।
  • एक हेक्टर में से 15 से 20 क्विंटल उत्त्पादन देती है। वेराइटी लगभग सभी राज्यों में अनुकूल है

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  • यह वेराइटी सीएमएस आधारित हलकी भूरी अरहर की हाइब्रिड वेराइटी है।
  • इस वेराइटी की फसल की आयु 165 से 185 दिन में पकने वाली और इसके दाने में 25%प्रोटीन की मात्रा होती है।
  • यह जल्दी से पकने वाली वेराइटी है। बीज बोने का दर प्रति एक हैक्टर 20 से 25 की.ग्रा तक होता है।
  • यह वेराइटी एक हेक्टर में से 25 से 30 क्विंटल उत्त्पादन देने वाली अच्छी वेराइटी हे।

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  • यह वेराइटी भूरे रंग के चमकीले दाने वाली और पियत और बिन पियत विस्तार में भी कर शकते है।
  • इस वेराइटी की फसल की पक ने की अवधि 165 से 175 दिन की है। एक हेक्टर मे से पियत में 30 से 35 क्विंटल और बिनपियत में 20 से 25 क्विंटल उत्त्पादन देती है।
  • यह जल्दी से पकने वाली वेराइटी है। बीज बोने का दर प्रति एक हैक्टर 20 से 25 की.ग्रा तक होता है।
  • यह वेराइटी रोग एवं किट के आगे टॉलरेन्स किस्म है।

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  • इस हाइब्रिड किस्म की बात करे तो इसकी बुवाई खरीफ के साथ रबी मौसम में भी की जा सकती है। 
  • यह देर से पकने वाली किस्मों में से एक है। इस वेराइटी की फसल की पक ने की अवधि 250 से 260 दिन की होती है।
  • यह देर से पकने वाली वेराइटी है। बीज बोने का दर प्रति एक हैक्टर 15 से 20 की.ग्रा तक होता है।
  • उपज क्षमता की बात करे तो पियत विस्तारमे प्रति हेक्टर 25 से 30 क्विंटल और बिन पियत विस्तारमे 20 से 25 क्विंटल तक उत्पादन होता है।
  • यह वेराइटी रोग जन्य में से एक वेराइटी है।

अरहर के फसल में लगने वाले रोग एवं किट और नियंत्रण

अरहर की फसल में रोग और किट आने से फसल में भारी नुकशान होता है। और फसल में नुकशान होता हे तो उत्पादन भी कम मिलता है।

जिस रोग और कीट की बात करेंगे उस जानकारी किसान भाइयो को पता होनी चाहिए। क्योकि इस जानकारी से रोग और किट को नियंत्रण करने में आपको काफी अच्छी मददमिलेगी।

किसान भाइयो खास ध्यान दे की जब आप दवा का छिड़काव करते हो तब धुप नहीं होनी चाहिए। अगर आप धुप में छिड़काव करेंगे तो आपकी दवा फसलमे ज्यादा काम नहीं करेगी।

उकठा रोग

उकठा रोग अत्यंत हानिकारक है।

इस रोग से अरहर की फसल में बहुत ज्यादा नुकसान होता है। यह रोग फफूंद द्वारा होता है। माना जाता हे के अधिकतम बारिस पडनेसे और अधिकतम गर्मी पडनेसे उकठा रोग होता है।

उकठा रोग के कारण पौधे की पतियों के ऊपरी भागों में पानी का परिभ्रमण रुक जाता है। और पौधे की ऊपरी पत्तियां पीली पडकर जमीन पर नीचे गिर जाती है। पौधों की टहनियां भी सूख जाती हैं।

इस रोग का नियंत्रण सही समय पर नहीं किया गया तो फसल में काफी नुकसान आता है। और आप को जितना मुनाफा चाहिए उतना आप को नहीं मिलपाता है।

नियंत्रण : यह रोग फफूंद द्वारा हो जाता है। यह रोग जिस विस्तार में होता है उस विस्तार में कृषि विभाग की सलाह लेए।

उकठा रोग ज्यादा तर खेत में अधिक पानी भराने से हो जाता है। इसलिए खेत में पानी निकाल का प्रबंध होना चाहिए।

जिस खेत में पहले ही वर्ष में उठका रोग लगजाए उस खेत में कई वर्षों तक अरहर नहीं लगाना चाहिए।

पत्ता धब्बे

यह रोग भी एक फफूंद द्वारा ही लगता है। इस रोग में पत्तियों पर पीले या काले और गोल धब्बे दिखाई देते हैं। और इस रोग का जल्दीसे नियंत्रण नहीं किया गया तो सब पौधे में धीरे धीरे बढ़ने लगता है। और पौधे की पत्तियां मुड़ जाती हैं और गिरने लगती है।

इस धब्बे का जल्दीसे नियत्रण नहीं किया गया तो धब्बे में से कई छारे रोग और किट उत्पन हो सकते है।

नियंत्रण : बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम से उपचारित करें

अरहर की खड़ी फसल में रोग के शुरूआती लक्षण नजर आने पर प्रति एक एकड़ भूमि में 500 ग्राम मैंकोजेब 35 ग्राम एससी का छिड़काव करें। खास ध्यान रखे छिड़काव धुप में ना करे।

तना गलन

अरहर में तना गलन रोग भी फफूंद द्वारा लगता है।इस रोग से पौधे के तने सुख ने लगते है और पूरा पौधा इस रोग से पौधा धीरे धीरे सूख जाता है।

नियंत्रण : जैसे आप के खेत में सूखा हुआ पौधा देखने को मिले तो तुरंत उस पौधे को नष्ट कर देना चाहिए।

तना गलन इस रोग नियंतरण के लिए कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50% WP एक एकड़ में एक किलोग्राम 400 लीटर पानीके साथ घोल मिलाके एक पौधे पर 50 मिलीग्राम पोधे की जड़ मे सिंचाई कीजिए।

बांझपन मोजैक वायरस

 बांझपन मोजैक वायरस को ‘ग्रीन प्लेग’ कहा जाता है

अरहर में यह वायरस घुन (माइट) द्वारा फैलता है।

इस वाइरस का प्रभाव फसल पर आज कल बहुत ज्यादा तेजीसे बढ़ रहा है।

अरहर में बन्ध्यता मोजैक वायरस माइट से फेलने वाला रोग है, जिसका प्रभाव फसल पर आजकल बहुत ज्यादा बढ़ रहा है। यह पत्तियों का रंग हल्का हरा पीला कर देता है। यह वाइरस पौधो पर फूल और फलियां नहीं आने देती है।

यह वायरस पौधे में लगता है तो पहले पौधे के पत्ते मुर्जा जाते है। फिर बाद में धीरे धीरे पत्ते गिर जाते है। इसका जल्दीसे इलाज़ नहीं किया गया तो सारे पौधे में यह वायरस लग जाता है। इससे आपकी सारी फसल नष्ट हो जाती है।

घुन (माइट) का आने का समय होता है, अधिक तापमान में और अधिक शर्दी में आते है।

नियंत्रण : आप पहले तो सफ़ेद मक्खी और माइट को नष्ट कीजिए और सफ़ेद मक्खी को नष्ट करने के लिए यलो स्टिक सारी फसल में लगानी चाहिए और डाइफेनथोरेंन 50% WP 250 ग्राम और प्लांटोमीयसीन 100 ग्राम 200 लीटर पानीके साथ मिलाके एक एकड़ में 15 दिन में दो बार छिटकाव करे।

अरहर की खेत में खरपतवार नियंत्रण रखे एवं इस रोग के प्रकोप वाले अरहर के पौधे को जमीन से निकाल दे और जलादे और वाइरस टॉलरेंस वेराइटी का चयन करना हितावह है।

प्लूम मौथ किट

यह किट हरे रंग का होता है। शरीर पर बालों के गुच्छे पाए जाते हैं। यह कीट ठन्डे मौसम में अधिक दिखाई देते हैं।

इस किट की इल्ली फली पर छोटा सा छेद बना देती है। उस छेद के पास उसका मल देखने को मिलेगा। कुछ समय के बाद दाने के आसपास लाल रंग की फफूंद आजाती है। हरे रंग की मादा एक एक करके कई सारे अंडे देती है। उस अंडे में से इल्ली पैदा होती है। यह इल्ली फली में जाकर फल को खा जाती है और उत्त्पादन में भारी गिरावट आती है।

नियंत्रण : इस किट का नियंत्रण करना बेहद जरुरी है। वरना आपकी फसल ख़राब करके पैदावार में गिरावट आ शकती है। इस किट के नियत्रण के लिए बाजार में फेनथ्थोएट 50% EC 400 मिलीग्राम और इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG 100 ग्राम दोनों पेस्टिसाइड को 200 लीटर पानि मे मिला के 15 दिन में दो बार एक एकड़ में छिड़काव कीजिए।

फली बेधक किट : यह किट सबसे अधिक नुकसान करता है। यह किट फलियों पर फूल पर और नाजुक पत्ते पर अपने अंडे छोड़ती है।

अरहर में यह कीट फली के अंदर बढ़ते हुए दानों को खाता है। इस किट का रंग हरा पीला और भूरा होता है।

नियंत्रण : इस कीट का नियंत्रण के उपचार करना है तो आपको थाइमेथॉक्ज़ाम 100 ग्राम 200 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना होगा। और इस छिटकाव के बाद 10 से 15 दिन में डाइमैथोएट 250 मिलिग्राम +ोल्फेनपैराइड 500 मिलीग्राम दोनों को 200 लीटर पानी में मिलाके एक एकड़ में छिटकाव करना चाहिए।

फली बेधक मक्खी : अरहर में इस मक्खी का लारवा मुख्य रूप से हानिकारक होता है और फलियों में बढ़ते हुए दानों को खाते हैं। फली वेधक मख्खी के लारवा दानो को खा कर उपज में घटा शकते है।

नियंत्रण : इस फली बेधक मक्खी के उपचार में हम एक्यूरेट कम्पनी का अटैक प्लस इमामेकेटिन बेंजोएट 2.00% W/W 500 मिलीग्राम और मिथाइल पाईरोलीडॉन 28.70% W/W 250 मिलीग्राम 200 लीटर पानी में मिला के एक एकड़ में छिटकाव करना चाहिए।

बुवाई के समय बीज उपसार केसे करे

बीज उपचार से बीज में उपस्थित आन्तरिक या वाह्य रूप से जुड़े रोगजनक फफूंद, जीवाणु, विषाणु और कीड़ों से फसल को होने वाले नुकसान को सीमित करने के लिए उपचारित बीजों पर कीटनाशक का लेप लगाया जाता है।

बीज उपचार गुणवत्तायुक्त भरपूर फसल उत्पादन प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है, 

जब आप उपचार कर रहे हो तब आप को खास ध्यान रखना है। की उपचार साए में करे।

अरहर के 1 की.ग्रा बीज दर से 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा 1.0% डबल्यू .पी और 5 ग्राम पी.एस.बी कल्चर से उपचार करे।

और उपचार के बाद 3 से 4 घंटे साए में सूखा दे और उसी दीन बीज को बो देना है।

खेत की तैयार केसे करे

जब आप खेत की तैयारी कर रहे हो तब आपको खेत में एक से दो बार कल्टीवेटर से पहेली और दूसरी जुताई करानी है।

और देशी गोबर की दो से तीन ट्राली पुरे खेत में विखेर कर, रॉटवेटर से खेत को एकदम समतल कर देनी है।

और मिट्टिको एकदम भूर भूरी कर देनी है।

खास ध्यान रखे खेत में बारिस का पानी नहीं भरना चाहिए। इसके लिए आपके खेत में पानी निकास का प्रबंध करे। इससे आपकी फसल को काफी सत्ती (नुकसान )पोहसती है।

और खेत के चारो ओर साफ सफाई करना बहुत जरुरी है। इससे आपकी फसल में कीड़े और कई रोग देखने को नहीं मिलेगे।

अरहर की बुवाई

किसान भाइयो अरहर के बुवाई बोन की अलग अलग विधिया होती है। आपको बीज बुवाई की अच्छी विधियो के बारे में बतायेंगे। जिससे अच्छा उत्पादन मिल सकेगा।

छिड़काव (सटका) करने की विधि

इस विधि का प्रयोग करने के लिए अच्छा अनुभव चाहिए।

यह फसल बुआई की सबसे अच्छी पुरानी विधि है। इसका फायदा यह है कि यह विधि आसान और कम समय वाली है।

इस विधि में खेत को अच्छी तरह से जुताई कर दी जाती है, और मिट्टी को भुरभुरी बना दिया जाता है। उसके बाद हाथों से बीजों को खेत में छिड़का जाता है। इसके बाद हल्की जुताई कर बीजों को मिट्टी में मिलाकर पाटा चला दिया जाता है।

इस विधि में अधिक बीज की आवश्यकता होती है.

बेड बनाने की विधि

इस विधि में खेत मे बेड बनाकर पंक्ति में बुवाई की जाती है। इस विधि में खेत मे बेड बनाकर पंक्ति में बुवाई की जाती है। तथा बेड के साथ बने पतली खाई (कुंड) द्वारा सिंचाई के साथ खेत से जल निकासी आसानी से संभव हो जाती है। 

रेज्ड बेड प्लांटर एक ऐसा कृषि यंत्र है जो बेड और कुंड बनाता है। बेड पर अरहर लगाने के लिए रेज्ड बेड प्लांटर का उपयोग किया जाता है।

पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दुरी

पंक्ति से पंक्ति की दुरी 4 – 5 फुट की दुरी
पौधे से पौधे की दुरी 2 – 3 फुट की दुरी

इस विधि में अरहर के बीज की मात्रा एक हेक्टर में 15 से 20 की.ग्रा तक बोना चाहिए।

इस विधि से अरहर लगाने पर अरहर के उपज में बृद्धि होगी।

इस सब विधियों में से सबसे अच्छी बेड विधि है। क्योकि ईस विधिमे कम लगान कम समय और ज्यादा मुनाफा मिलता है।

कतार बनाने की विधि

अरहर की खेती कतार विधि से करते है , तो कम लागत में ज्यादा मुनाफा मिलता है।

यह विधि विभिन्न कृषि औजारों से की जाती है। जैसे सीड ड्रिल, पैड़ी ड्रम सीडर और कल्टीवेटर आदि से की जाती है।

छिड़काव विधि की जो भी दिक्कते आती है उनसे इस विधि से छुटकारा पाया जा सकता है।

इस विधि में कम वर्षा की स्थिति में भी उपज ज्यादा मिलता है।

इतना ही नहीं, इस विधि से खर-पतवार भी कम पैदा होते है।

छिड़काव विधि की तुलनामे 10 से 15 दिन जल्दी फसल पकती है।

अरहर की खेती में खरपतवार कैसे करे

अरहर की खेत में खरपतवार बात करेगे।

जब अरहर के पौधे छोटे होते हे तब खरपतवार कराना बेहद जरुरी है। जब अरहर के पौधे बड़े हो जाते है तब खरपतवार की ज्यादा जरूर नहीं पड़ती है।

जब अरहर के पौधे छोटे होते हे तब खरपतवार करने से पौधे में लम्बाई, चौड़ाई और ग्रोथ बढ़ता। है।

खरपतवार दो तरीके से की जाती है। (1) प्राकृतिक तरीके से (2) रासायनिक तरीके से

(1) प्राकृतिक तरीके से : इस तकनीक से ज्यादातर किसान भाइयो खरपतवार करते है। जैसे वीडर यत्र नो उपयोग करके खरपतवार दूर किया जा सकता है। इस तकनीक से मिट्टी के कण एक दूसरे से दूर हो जाते है इससे मिट्टीमे नाइट्रोजन और ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है। इससे पौधे का विकास होता है।

(2) रासायनिक तरीके से : इस युग में खरपतवार दूर करने के लिए सायनिक दवाई का अधिक उपयोग होने लगा है। जैसे 1 लीटर पेंडीमिथलिन 1000 से 1200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एक हेक्टर में छटकाव करने से खरपतवार दूर कर सकते हो। 1 लीटर फ्लूक्लोरेलिन (बासालिन) 900 से 1100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एक हेक्टर में छटकाव करने से खरपतवार दूर कर सकते हो।

इस तकनीक से खरपतवार जल्दी से दूर हो जाता है, लेकिन नुकसान भी ज्यादा होता है। जैसे मिट्टी में पी.एच,मान, पोटेशियम, सल्फर और कई खनिज तत्व कम हो जाता है। इससे पौधे का जल्दी से विकास नहीं होता है।

बुवाई के समय कोन कोन सा उर्वरक डाले

जब हम बुवाई कर रहे हो तब ईस समय स्पेशियल डोज में कोन कोन शा उर्वरक डाल सकते है।

उर्वरक तीन प्राथमिक पोषक तत्व प्रदान करते हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि में सहायता करती है

डी.ए.पी ( डि-अमोनियम फॉस्फेट ) उर्वरक

डी.ए.पी का उपयोग नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी वाले क्षेत्रों किया जाता है।

किसान भाइयो डी.ए.पी उर्वरक फसल में डालने से फसल की वृद्धि और विकास होता है।

किसान भाइयो डी.ऐ.पी की बात करे तो भारत में सबसे अधिक उत्पादन जुगरात में होता है।

हाल ही में भारत सरकार ने डी.ए.पी पर सब्सिडी में 137% की वृद्धि की घोषणा की है।

डी.ए.पी देखने में सफ़ेद रंग का होता है, और ए नरम और जल्दी से पिघल जाता है।

डी.ए.पी. उर्वरक की बात करे तो भारत में एक पसंदीदा उर्वरक है क्योंकि इसमें 18% नाइट्रोजन और 46% फास्फोरस दोनों शामिल हैं 

फॉस्फोरस जड़ने और फूल में सुधार करता है

डी.ए.पी. पौधों के पोषण के लिए सबसे अच्छा उर्वरक माना जाता है।

किसान भाइयो खाश ध्यान दीजे डी.ए.पी के गलत उपयोग से अमोनिया निकलने के कारण अंकुर को नुकसान हो सकता है।  डी.ए.पी उर्वरक को बीज के नीचे थोड़ा सा एक तरफ रखना चाहिए।

डी.ए.पी की बात करे तो प्रति एक हैक्टर में 50 से 100 की.ग्रा का इस्तेमाल किया जा सकता है।

एस.एस.पी ( सिंगल सुपर फॉस्फेट ) उर्वरक

एस.एस.पी क्या है और इसका इस्तेमाल कैसे करें।

एस.एस.पी उर्वरक सल्फर की कमी वाले क्षेत्रों में सबसे ज्यादा उपयोद किया जाता है।

एस.एस.पी बात करे तो भारत में एकमात्र सल्फर प्रदान करने वाला खाध है।

एस.एस.पी एक सस्ता उर्वरक है जो फल और बीज के विकास के लिए आवश्यक है।

यह दिखने में कठोर दानेदार, भूरे काले बादामी रंग का होता है। यह पाउडर के रूप में भी उपलब्ध है। इस दानेदार उर्वरक में अक्सर डी.ए.पी. की मिलावट की जाती है

एसएसपी सबसे लोकप्रिय फॉस्फेटिक उर्वरक है क्योंकि इसमें 3 प्रमुख पौधों के पोषक तत्व होते है। पोषक तत्व की बात करे तो फास्फोरस-16%, सल्फर-14.5% और कैल्शियम-21% के साथ-साथ कई सूक्ष्म पोषक तत्व भी शामिल हैं।

एस.एस.पी उर्वरक का स्थान मिट्टी में स्थिर है। इसलिए इसके स्रोत को ऐसी दूरी पर रखा जाना चाहिए जहां पौधों की जड़ें आसानी से पहुंच सकें। एस.एस.पी उर्वरक को बीज के नीचे रखाना चाहिए। इससे आपकी फसल का विकास होगा।

एस.एस.पी का उपयोग हमेशा जुताई के समय खेतो में डालना चाहिए , क्योंकि कम धुलनशील होने के कारन यह मिट्टी में घुलने में अधिकतम समय लगता है।

एम.ओ.पी ( म्यूरेट ऑफ पोटाश ) उर्वरक

एम.ओ.पी उर्वरक का शुष्क और अर्ध शुष्क विस्तारो में ज्यादा तर इस्तेमाल होता है। क्योंकि शुष्क और अर्ध शुष्क विस्तारो में पानी की मात्रा कम होती है।

एम.ओ.पी उर्वरक की बात करे तो पौधों की वृद्धि और गुणवत्ता के लिए आवश्यक है

इस उर्वरक की बात करे तो ईस में 60% पोटास होता है।

पोटैशियम कीटों के विरुद्ध पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

पोटेशियम अत्यधिक तापमान से लेकर कीड़ों के हमलों से बचाता है पर्यावरणीय हमलों के प्रति प्रतिरोध को मजबूत करता है।

पोटेशियम पौधों में पानी की मात्रा को बनाए रखता है। इससे फसल को धुप से बचाए रखते है।

पोटेशियम पौधोंको मजबूतर उत्तेजन करता है। पोधे की बाहरी दीवाल को सोडाईर मजबूती को बढ़ावा देता है। और पौधे को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है।

प्रमुख पोषक तत्वों की अपूर्ति के लिए एम.ओ.पी उर्वरक को आम तौर पर एस.एस.पी उर्वरक के साथ मिश्रित किया जाता है।

एम.ओ.पी उर्वरक प्रति एक हेक्टर में 30 से 35 की.ग्रा तक डालना चाहिए।

यूरिया उर्वरक

यूरिया उर्वरक सभी प्रकार की फसलों एवं मिट्टी के लिए उपयोगी है।

यूरिया उर्वरक में 46% नाइट्रोज़न होता है।

यूरिया उर्वरक बुआई के समय ही डालना चाहिए।

यूरिया उर्वरक का मुख्य कार्य हरी पत्तियों के विकास को बढ़ावा देने और पौधों को हराभरा दिखाने के लिए पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करना है।

यूरिया खाध का उपयोग मुख्य रूप से फूलों के विकास के लिए किया जाता है।

यूरिया पौधों की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में भी सहायता करता है।

यूरिया उर्वरक केवल नाइट्रोजन प्रदान कर सकता है, फास्फोरस या पोटेशियम नहीं

यूरिया उर्वरक को डी.ए.पी उर्वरक के साथ आसानी से मिलाया जा सकता है। लेकिन ध्यान रखे के यूरिया से अधिक डी.ए.पी नहीं होना चाहिए।

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में नाइट्रोजन का दर प्रति एक हेक्टर 120 से 130 की.ग्रा तक होना चाहिए।

समशीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में नाइट्रोजन का दर प्रति एक हेक्टर 100 से 110 की.ग्रा तक होना चाहिए।

बुवाई के समय की उर्वरक

पियत क्षेत्रों में बुवाई के समय 3 से 4 टन देशी गाय का गोबर, 80 कि.ग्रा यूरिया, 100 कि.ग्रा एस.एस.पी, 25 कि.ग्रा एम.ओ.पी प्रति एक हेक्टेयर में डालना चाहिए।

बिन पियत क्षेत्रों में बुआई के समय 4 से 5 टन देशी गाय का गोबर, 90 कि.ग्रा यूरिया, 120 कि.ग्रा एस.एस.पी, 33 कि.ग्रा एम.ओ.पी प्रति एक हेक्टेयर में डालना चाहिए।

इससे आपकी फसल में ज्यादा ग्रोथ देखने को मिलेगा और मुनाफा भी ज्यादा होगा।

अरहर घर पर सुरक्षित केसे रखे

अरहर की दाल जिस डब्बे में आप रखते हो उस डब्बे में कड़वी नीम के पत्ते और सुखी लाल मिर्च रखने से इसमें कीड़े नहीं पड़ते है। और अरहर की दाल लंबे समय तक सुरक्षित रहेती है।

अरहर दाल से बनाई जाती कई रेसिपी

अरहर की दाल से कई स्वादिष्ट और फायदेमंद रेसिपी बनती है। जैसे अरहर के लड्डू, सब्जी, हलवा, खुसाडी और ढोकला बनता है।

अरहर की दाल से पूरनपोली , कढ़ी बनती है।

अरहर की दाल में कई सब्जियो में मिलाकर तड़का लगाने पर यह बहुत स्वादिष्ट लगती है।

अरहर की दाल में अलग अलग सब्जिया , मसाले और इमली मिलाकर बनाने से दक्षिण भारत का स्वादिष्ट सांभर तैयार किया जाता है। जो इडली डोसा के साथ बहुत अच्छा लगता है।

अरहर खाने से फायदे

अरहर में पोटेशियम, कार्बोंहाईड्रेड, प्रोटीन, आयर्न, कैल्शियम औरनिज तत्व काफी मात्रामे पाए जाते है।

अरहर प्रोटीन से भरपूर होने की वजह से अरहर की दाल खाने से पेट लंबे समय तक भरा रहता है।

अरहर खाने से शरीरमे रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है।

अरहर की दाल पाचन तंत्र के लिए भी सुरक्षित है।

मित्रो जिन लोगों को बीपी हमेशा एक जैसी नहीं रहेती उन्हें अरहर खाना चाहिए।

अरहर हाई बीपी को कंट्रोल करने में मदद करता है।

अरहर दाल में शुद्ध धी डालकर खाने से कई फायदे होता है। जैसे अरहर में शुद्ध घी डालकर खाने से एसिडिटी (गेस) की बीमारी दूर होती है।

सारांश

नमस्ते किशान भाईयो इस आर्टिकल के माध्यम से आपको अरहर की खेती (Kisan is Taknik Se Arhar Ki Kheti Kare) इन के बारे में बारीक़ से जानकारीमिली होगी।

अरहर की उन्नत किस्मे कौन कौन सी है। इन के बारेमे भी बहुत कुछ जानने को मिला होगा। अरहर की खेती कब और कैसे की जाती है इन के बारे में भी बहुत कुछ बताया है। अरहर की खेती एक हेक्टर में करे तो उपज कितनी प्राप्त कर शकते है।

अरहर की खेती में ए आर्टिकल आप को बहुत हेल्पफुल होगा। उम्मीद रखते है की ए आर्टिकल आप को बहुत पसंद भी आया होगा। इस लिए ए आर्टिकल को अपने सबंधी एवं मित्रो और किशान भाई को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे।

अरहर की खेती (Kisan is Taknik Se Arhar Ki Kheti Kare) इन आर्टिकल के अंत तक बने रहने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद

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