तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) : तोरई एक कद्दूवर्गीय सब्जियों में से एक है। और तोरई का पौधा लतादार या बेल वाला होता है। तोरई को अंग्रेजी में (ridge gourd) कहते है।
तोरई को आप घर पर एवं बड़े खेत में भी ऊगा शकते है। तोरई की खेती हम ग्रीष्म ऋतु एवं वर्षा ऋतु दोनो में कर शकते है। जब बारिश का मौसम चल रहा हो तब तो तोरई की खेती में से अच्छी उपज प्राप्त कर शकते है।
तोरई की खेती भारत के किशान करते है। तोरई की खेती हमारे देश भारत में कई राज्यों में की जाती है। जैसे की महाराष्ट्र, उतर प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, केरल, एवं गुजरात के कही विस्तार में भी तोरई की खेती बड़े पैमाने में की जाती है।
तोरई की मांग छोटे गांव से लेकर बड़े शहेरो तक बहुत होती है इसी लिए बाजार में तोरई के दाम भी अच्छे मिलते है। तोरई देखने में 1 से लेकर 1.5 फिट लम्बा होता है। और ऊपरी हिच्छे में छोटी छोटी धारिया होती है।
तोरई के बेल पर पीले रंग का फूल आता है और इन फूल से कुछी दिनों में तोरई तैयार हो जाता है। तोरई में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा एवं विटामिन ए, भरपूर मात्रा में पाये जाते है।
इन सब तत्व एवं विटामिन के कारण भी तोरई की मांग रहती है और गर्मी के मौसम में तो तोरई की मांग और भी बढ़ती जाती है। और बढ़ती मांग के कारण तोरई की खेती किशान भाई को लाभदायक हो शक्ती है।
और किशान तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) कर के अच्छा मुनाफा भी पा शकता है। तोरई की खेती हम फरवरी या मार्च महीने में करते है और कही विस्तार में तो जून से लेकर जुलाई मास के बीच भी की जाती है।
अगर किशन भाई तोरई की अगेती खेती करना चाहे तो कर शकते है। इस के लिए पोली हाउस तकनीक का उपयोग करना होगा। पोली हाउस तकनीक की मदद से तोरई की अगेती खेती के लिए पौधे को तैयार कर शकते है।
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) कर के किशान अच्छी इनकम कर शकते है। इस लिए किशान भइओ को तोरई की खेती में मदद मिल शके और ज्यादा उपज तोरई की खेती में मिले
इस लिए हम आज इस आर्टिकल के माध्यम से सारे किशान भइओ को बताना चाहते है की तोरई की खेत को केसी मिट्टी की एवं मिट्टी की तैयारी करनी चाहिए और तोरई की खेती को अनुरुप तापमान एवं जमवायु।
तोरई की प्रसिद्ध किस्मे (वेराइटी), तोरई की बुवाई कब और कैसे करे, बुवाई में बीज दर एवं अंतर कितना रखे, तुरई में लगने वाले रोग एवं कीट, तोरई की तोड़ाई एवं उपज इन सब के बारे में बारीक़ से बात करेंगे।
और तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) की सारी जानकारी इस आर्टिकल के माध्यम से आपको मिल जाएगी। तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) की सारी माहिती के लिए आपको इस आर्टिकल में अंत तक बने रहना या पढ़ना बेहद जरूरी है
तुरई की खेती (Turai Ki Kheti) Overview
आर्टिकल का नाम | तुरई की खेती (Turai Ki Kheti) |
इस आर्टिकल का उदेश्य | किशान भाई ओ को तुरई की खेती में मदद मिले |
प्रसिद्ध वेराइटी | लतिका, माहि सुरेखा 1, माहि 7, NS 4789, उर्मिला, आरती, मोहिनी, पल्लवी, राधिका |
बुवाई कब और केसे करे | वर्षाकालीन (बारिश) के मौसम में जनवरी, ग्रीष्मकालीन में जून मास में |
पौधे से पौधे की दुरी | 1.5 से 2.5 कीट या 2 से 3 फीट की दुरी रखनी चाहिए |
तापमान और वातावरण | 25℃ से 30℃ तापमान और समशीतोष्ण और शुष्क एवं आद्र जलवायु |
खाद कौन सा डाले | सड़ा हुआ गोबर, इन के आलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस, एवं पोटाश डाले |
आने वाले रोग एवं कीट | एन्थ्रेक्नोज, पाउडरी मिल्ड्यू और रेड पंपकिन कीट, चेंपा कीट, माइट, फल मक्खी, और तेला |
एक हेक्टरमे उपज | एक हेक्टर में 110 से 150 क्विंटल की आस पास उपज रहती हैं |
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मिट्टी की पसंदगी और तैयारी कैसे करे ? (Turai Ki Kheti me)
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) करने के लिए मिट्टी की पसंदगी ऐसे करे की जहा जालभरा ना रहता हो और तोरई की अच्छी उपज के लिए मिट्टी की P.H मान 6 से 7 के बिस होना जरूरी है।
तोरई की अच्छी उपज के लिए जीस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ भारी मात्रा में और ज्यादा उपजाऊ जमीन तोरई की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। तोरई की खेती आमतौर पर विविध मिट्टी में की जाती है।
लेकिन हलकी दोमट मिट्टी में तोरई के बेल (पौधे) अच्छी वृद्धि करते है। और जीस जमीन में जलनिकास अच्छी हो और जीवांश युक्त मिट्टी है वही ज्यादा तोरई की खेती करते है। रेतीली मिट्टी में भी तोरई की खेती की जा शक्ति है।
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में मिट्टी की तैयारी इस प्रकार की जाती है की पहले तो 1 से 2 बार गहरी जुताई करनी होगी बाद में पाटा सलाके जमीन को समतल कर ले ताकि जब धौरेनुमा या क्यारियों में तोरई की सिंचाई करे तब कोई दिकत ना हो।
जब गहरी जुताई हो जाये तब एक हेक्टर के हिसाब से देशी खाद में सड़ा हुआ गोबर 10 से 12 टन मिट्टी में डाल के अच्छे से जमीन में मिला देना चाहिए । और इस के आलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश भी दे शकते है
तापमान और जलवायु
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में तापमान की बात केरे तो तोरई 25℃ से 30℃ तापमान शाहन कर शकता है। और इस तापमान में तोरई के पौधे या (बेल) अच्छे से वृद्धि करते है
फूल भी बहुत नहीं जड़ते और पैदावार भी ज्यादा मिलती है जब सर्दी के मौसम है और ठंड भी काफी पड़ती है तब तोरई वृद्धि नहीं कर पाता और उपज भी कम प्राप्त होती है। इस लिए तोरई की खेती उचित तापमान पर करनी चाहिए। अच्छी मात्रा में उपज लेने के हेतु।
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में जलवायु समशीतोष्ण और शुष्क एवं आद्र जलवायु अच्छा माना जाता है। और शुष्क एवं आद्र जलवायु में तोरई के बेल (पौधे) अच्छे से वृद्धि करते है।
तोरई को गर्म एवं बारिश दोनों मौसम में बुवाई कर के उपज ले शकते है। पर जब तोरई के पौधे छोटे से बड़े होते है तब बारिश के कारण तोरई के बेल वृद्धि करते है
तोरई के बेल बड़ी हो जाये और पीले फुज अंकुरित होते है तब बारिश के कारण तोरई के फूल जमीन पर जड़ते है और उपज में भारी गिरावाट देखने को मिलेगी।
तोरई का सबसे अच्छा बीज कौन सा है?
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में प्रसिद्ध किस्मे (वेराइटी) की बुवाई कर नी बेहद जरूरी है। क्यों की ज्यादा उपज के लिए अच्छी वेराइटी की बुवाई किशान को करनी होगी।
अच्छी उपज एवं रोग प्रतिकारक शक्ति जीस बेराइटी में है वही वेराइटी को प्रसिद्ध किस्मे या वेराइटी कहा जाता है। अगर प्रसिद्ध किस्मे की बात करे तो अंकुर सीड्स का अंकुर लतिका, महिको ग्रो कम्पनी का माहि सुरेखा 1, और माहि 7
नामधारी सीड्स का NS 4789, रेमिक सीड्स का उर्मिला, सोमानी सीड्स का आरती, जेन्टेक्स सीड्स का मोहिनी, ईस्टवेस्ट का नावी, नोवोगोल्ड सीड्स का पल्लवी, अजीत सीड्स का बोनांजा,
टीएम सीड्स का राधिका, यूनीसेम सीड्स का कुंभ, इन के आलावा भी कई सारी प्रसिद्ध किस्मे है इन किस्मे की बुवाई कर के उपज भारी मात्रा में ले शक्ति है।
- लतिका : इस वेराइटी की प्रोवाईड अंकुर सीड्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा नागपुर से होती है इस पैकेज की Net Weight 50 ग्राम है। इस किस्मे की एक खासीयत है की तोरई पतला और लम्बा होता है। इस वेराइटी को सर्दी के मौसम में नहीं बुवाई की जाती है। और खरीफ एवं बारिश के मौसम में बुवाई कर के अच्छी उपज ले शकते है
- माहि सुरेखा 1 : इस वेराइटी की प्रोवाईड महिको ग्रो कम्पनी द्वारा की जाती है। और इस पैकेज की Net Weight 50 ग्राम है। इस किस्मे के तोरई लम्बे होते है और हरे रंग के होते है एवं लंबाई 40 से 45 सेमि, और वजन की बात करे तो 130 से 160 ग्राम का होता है इस वेराइटी में तुड़ाई आप 40 से 45 दिन के बाद कर शकते है।
- माहि 7 : इस वेराइटी की प्रोवाईड महिको ग्रो कम्पनी द्वारा ही की जाती है। और इस पैकेज की Net Weight 50 ग्राम है। इस किस्मे के तोरई लम्बे होते है और लम्बाई 50 से 55 सेमि, होती है। और वजन में भारी 130 से लेकर 160 ग्राम का तोरई होता है।
- NS 4789 : इस वेराइटी की प्रोवाईड नामधारी सीड्स द्वारा की जाती है। और इस पैकेज की Net Weight 50 ग्राम है। इस वेराइटी के तोरई लम्बे और वजन में भी भारी होते है।
- उर्मिला : इस वेराइटी की प्रोवाईड रेमिक सीड्स के द्वारा की जाती है। और इस पैकेज की Net Weight 50 ग्राम है। इस वेराइटी में तोरई थोड़ी छोटी होती है। और इस के तोरई की लम्बाई 35 से 40 सेमि,और वजन की बात करे तो 700 से लेकर 900 ग्राम का होता है और इस की पैदावार 45 से 55 दिन में देने लगते है
- आरती : इस वेराइटी की प्रोवाईड सोमानी सीड्स द्वारा की जाती है। और इस पैकेज की Net Weight 50 ग्राम है। इस तोरई की लम्बाई 25 से 30 सेमि, और वजन में भरी 200 से 250 ग्राम का होता है
- मोहिनी : इस वेराइटी की प्रोवाईड जेन्टेक्स सीड्स के द्वारा की जाती है। और इस पैकेज की Net Weight 25 ग्राम है। इस का वजन 110 से 120 ग्राम का होता है और रंग गहरा हरा होता है।
- पल्लवी : इस वेराइटी की प्रोवाईड नोवोगोल्ड सीड्स के द्वारा की जाती है। और इस पैकेज की Net Weight 50 ग्राम है। रंग हरा गहरा होता है
- बोनांजा : इस वेराइटी की प्रोवाईड अजीत सीड्स द्वारा की जाती है। और इस पैकेज की Net Weight 50 ग्राम है। और लम्बाई में 30 से 35 सेमि, वजन में 120 से 130 ग्राम का होता है और 40 से 45 दिन में पैदावार देने लगता है
तोरई कौन कौन से महीने में लगाई जाती है?
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) की बुवाई दो प्रकार से की जाती है एक तो बीज की बुवाई कर के और दूसरी नर्सरी में से तुरई के पौधे की बुवाई करते है। तोरई की बुवाई ज्यादा तर किशान बीज बिवाई कर के करते है।
तोरई की बुवाई ग्रीष्मकालीन और वर्षाकालीन दोनों मौसम में की जाती है। तोरई के बुज बुवाई से पहले बीज उपचार करना बेहद जरूती है। क्यों की जब बीज की बुवाई करते है तब बीज मेसे अंकुरित पौधा कई रोग से ग्रषित हो जाता है
तोरई की वृद्धि जल्द नहीं हो पाती इस लिए बीज को थाइरम नाम के फफुंदी नाशक दवाई 2.5 ग्राम थोड़े पानि मे मिलाके 1 किलो बीज में अच्छे से मिला देना चाहिए। इस तरी के से पौधा जल्द वृद्धि करते है और कोई रोग का ख़तरा भी टाल शकते है।
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) अगर आप एक हेक्टर में करना चाहते है तो बीज की मात्रा 2 से 3 किलो काफी है। बीज की बुवाई आप नालिया बना के और क्यारियों बना के कर शकते है।
तोरई की खेती मेड में 2 में 3 फीट की दुरी रख के की जाती है। और क्यारियों में करे तो क्यारियों के बीचो बिच 9 से लेकर 12 फीट की दुरी और पौधे से पौधे की दुरी 1.5 से 2.5 कीट की दुरी रखनी चाहिए।
नालिया 45 से 50 सेमी, और चौड़ाई 30 से 40 सेमी, की गहराई रखनी होगी। इस में आप बारिश के मौसम में बुवाई करे तो जनवरी मास में कर शकते है और खरीफ में जून मास में कर शकते है। तोरई की बुवाई कब करे ए सब आप के ऊपर डिपेंड करता है
तोरई की ग्रोथ कैसे बढ़ाए?
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में खरपतवार करना जरूरी है क्यों जब कोई भी फसल हो खरपतवार नियंत्रण नहीं करे तो फसल मे से उपज धीरे धीरे कम होतति है। तोरई की खेत में खरपतवार हम दो रतिके से कर शकते है।
एक तो खुरपी से या नीलाई गुड़ाई कर के और दूसरी रासयनिक दवाई की मदद से भी कर शकते है। पर हम तो कहते हे की खुरपी से या नीलाई गुड़ाई से खरपतवार करे क्यों की रासायनिक दवाई का छिटकाव से जमीन की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है।
और 2 से 3 साल बाद कोई भी फसल उपाऊ अच्छी मात्रा में उपज नहीं मिलेगी क्यों की जमीन का P.H मान नष्ट हो जाता है। आप रासायनिक दिवाई में बासाली 70 से 80 एमएल 16 लीटर पानी में घोलमिला के छिटकाव कर शकते है। और सिंचाई में भी इस दवाई का इस्ते माल कर शकते है
तोरई की देखभाल कैसे करे?
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में तोरई के बेल की देखभाल अच्छे से करनी चाहिए क्यों की अच्छी उपज लेने के लिए देखभाल भी अच्छी करनी होगी। तोरई की खेती में समय सर सिंचाई करनी होगी।
तोरई पर कोई रोग या कीट का अटेक होने पर योग्य दवाई का छिटकाव कर के तोरई के पोघे या तोरई की बेल को कीट या रोग से ग्रषित होने से पहले दवाई का छिटकाव कर के बचाना चाहिए। और जरूरी मुजब खाद भी देना होगा। इस तरी के से तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) की देखभाल करनी चाहिए।
तोरई को कितनी बार पानी देना चाहिए?
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। तोरई की खेती हम ग्रीष्मकालीन में और वर्षाकालीन दोनों मौसम में कर शकते है।
इस लिए जब ग्रीष्मकालीन मौसम में की है तो थोड़ी पानी की वर्षाकालीन ज्यादा करनी होगी किन्तु जब वर्षाकालीन मौसम में की है तो पानी की वर्षाकालीन कम करनी होगी।
ग्रीष्मकालीन मौसम में 4 से 5 दिन के अंतर में सिंचाई करनी होगी और वर्षाकालीन मौसम में कही बार ज्यादा बारिश हो जाती है तो तोरई की खेती में सिंचाई जरूरत मुजब करे।
तोरई के पौधे बड़े होकर जब फूल या फल आने लगे तब सिंचाई करनी बेहद जरूती है क्यों की कोई बी फसल हो फल फूल आने के बाद पौधे या बेल को सिंचाई की जरूरत ज्यादा पड़ती है। क्यों की बेल और बेल पर लगे फल दोनों की वृद्धि अच्छे से हो शके।
सबसे अच्छा खाद कौन सा होता है?
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में खाद योग्य समय पर देना जरूरी है क्यो कि पौधे और फल दोनों की अच्छी वृद्धि एवं भारी मात्रा में उपज प्राप्त करने के लिए योग्य समय सर खाद डालना या देना ही होगा।
जीस मिट्टी (जमीन) में तोरई की खेती करे वही मिट्टी या जमीन का मृदा एवं जल का परीक्षण करना बेहद जरूती है। जब आप मृदा एवं जल का परीक्षण करवा लेते हो तब आप को पता चल जाता है
जीस मिट्टी या जमीन में हम तोरई की बुवाई करना चाहते है उस जमीन में क्या क्या तत्व की कमी है। और उस कमी के हिसाब से हम योग्य खाद डालके पौधे की और पौधे पर लगे फल की वृद्धि के लिए खाद दे शकते है।
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में गहरी जुताई के बाद एक हेक्टर में 15 से लेकर 20 टन तक अच्छे से सड़ी गोबर की खाद डाल के एक जुताई कर ले ताकी मिट्टी में अच्छे से मिल जाये। और इस के आलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश भी डाल शकते है।
- नाइट्रोजन : नाइट्रोजन पौधे को वातावरण में से 80% किलता है और 4% पानी के माध्यम से मिलता है। इस के आलावा एक हेक्टर में हम 70 से 80 किलो नाइट्रोजन डाल शकते है। नाइट्रोजन का मुख्य हेतु है पौधे या बेल की वृद्धि करना।
- फास्फोरस : हम एक हेक्टर में फास्फोरस 35 से 40 किलो डाल शकते है। इस का माप जमीन की H.P मान के डालना चाहिए। इस तत्व का मुख्य कार्य है पौधे या बेल पर फूल की वृद्धि, फल की वृद्धि और पौधे में रोग प्रति कारक शक्ती बढ़ा देना। इस के आलावा भी ए तत्व कार्य करते है फल के आकर को बढ़ता है।
- पोटाश : हम एक हेक्टर में पोटाश 35 से 40 किलो डाल शकते है। इस तत्व का मुख्य कार्य है पौधे के जड़ो को विक्षित करना और कई रोग एवं कीट से बचाते है। जब किसी भी पौधे या बेल की जड़ मजबूती से जमीन के साथ जुड़ जाती है। पोटाश देने से पौधे की कोशिका की दीवारे मजबूत होती है और तने या बेल के कोष्ट की बड़ोतरी होती है
तोरई में कौन सा कीट रोग फैलाता है?
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में कई रोग एवं कित लगते है और इस रोग एवं कीट के कारण फसल और फल को भारी नुकशान होता है। और बाद में उपज में भारी गिरावाट देखने को मिलेगी।
तोरई की खेती में इस तरह के रोग एवं कीट ज्यादा तर देखने को मिलेगा। जैसे की एन्थ्रेक्नोज, पाउडरी मिल्ड्यू और डाउनी मिल्ड्यू और किट की बात करे तो रेड पंपकिन कीट, चेंपा कीट, माइट, और फल मक्खी, तेला, इस प्रकार के रोग या कीट देखा जाता है।
- एन्थ्रेक्नोज : तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में एन्थ्रेक्नोज रोग लगता है तब फसल की पतिया पर भूरे धब्बे दिखाय देते है। ए रोग कलेटोट्रीचम लगेनरियम फफूंदी के माध्यम से फैलता है। इस रोग लगाने से पातीय धीरे धीरे जमीन पर गिरने लगाती है।
- पाउडरी मिल्ड्यू : इस रोग के कारण पतिया पर सफ़ेद रेखा दिखने को मिलेगी और इस रोग लगाने के कारण है विविध प्रजाति की फफूंदी और इस रोग का फैलाव वहिकाओ द्वारा होता है। इस रोग के कारण जेते फसल की पतिया सुख के गिरती है।
- डाउनी मिल्ड्यू : इस रोग के कारण पतों के ऊपर नारंगी एवं पीले रंग के धब्बे दिखाय देते है। इस रोग से फसल को बचाने के लिए हमे खरपतवार नियंत्रण करना होगा और बिन जरूरी घास को निकाल देना चाहिए।
- रेड पंपकिन कीट : इस कीट की बात करे तो ए कीट ज्यादा तर कद्दू वर्गीय सब्जियों में देखने को मिलता है। इस रोग के कारण पत्तिया पर छोटी छोटी सुरंग दिखाय देती है। और सुण्डिया मिट्टी के भीतर रहती है और पौधे की जड़ो को काट ने का कार्य करते है और एक दिन बिना जड़े पौधे सूखने लगते है
- रेड पंपकिन बीटल यह सभी कद्दू वर्गीय सब्जियों का प्रमुख कीट है। इसके लाल पीले रंग के प्रौढ़ पत्तियों में गोल सुराख बनाते हैं तथा क्रीम रंग की सुण्डिया जमीन में रहकर जड़े काटकर पौधों को नुकसान पहुंचाती हैं।
- चेंपा कीट : इस कीट के कारण मुख्य फसल के पतों ऊपर की दिशा में मोड़ जाते है। और पतिया पीले रंग की हो जाती है या दिखती है। इस कीट का मुख्य कार्य है पतिया में रस है वही रस को चूस लेते है। इस कारण पतिया ऊपर की दिशा में मोड़ जाती है।
- माइट : इस किट को मुख्य तवे हम पतिया पर देखते है। छोटे या बड़े पतों पर दिखाय देते है इस कीट का मुख्य कार्य भी पतों से रस चूस ना है और रस चूस जाने से पतों पीले और कमजोर हो जाते है बाद में पतों सुख जाते है और पौधे से जड़ जाते है।
- यह सभी शिशु तथा प्रौढ़ावस्था में पत्तों से रस चूसते हैं। जिसके कारण पौधे पीले व कमजोर हो जाते हैं तथा पैदावार घट जाती है। इन सभी की रोकथाम के लिए 0.1ः मेलाथीयॉन 0.05 या 5ः इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करना लाभप्रद है।
- फल मक्खी : इस किट की वजे से किशान को उपज में भारी नुकशान होता है। इस कीट का मुख्य कार्य है मादा मक्खी फल के ऊपरी हिच्छे में अंडे देती है और इन अंडे मेसे सुजा निकल के सीधे फल को खाते है और फल को बिगाड़ ते है।
- इस कीट से खरबूजे की फसल को बहुत नुकसान होता है। मादा मक्खी ज्यादा तर फल पर अंडे देती है और अंडे से जब सूजे निकल ते है वे सूजे सीधे फल पर अटैक करते है। और फल के गूदा खाते है इस के कारण फल बहुत ख़राब होते है। इस लिए खरबूजे की फसल से ऐसे सारे फल तोड़ या उखाड़कर के बहार फेक देनी चाहिए।
- तेला : तेला हम पतिया एवं फल दोनों पर दिखाय देते है। तेला का मुख्य कार्य है पतिया खाना और फल को भी खाना। इन तेला के कारण पौधा में वाइरस लगने का खतरा रहता है। इस तेला के कारण पटिया गिरती है।
बागवानी में कीट रोग को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में लगाने वाले रोग एवं कीट का नियंत्रण करना जरूरी है। नहीं तो तोरई की सारी फसल बर्बाद हो जाती है। और उपज कम होजाती है और नुकशान ज्यादा होता है।
उपज कम होने पर किशान को अच्छा मुनाफा भी नहीं मिलता। इस लिए जब रोग या कीट दिखाय दे तब योग्य दवाई का साही उपयोग कर के रोग एवं कीट का नियंत्राण कर ना चाहिए। और रोग एवं कीट का उपचार निचे दी गई विधि मुजब आप कर शकते है
- एन्थ्रेक्नोज : इन रोग के उपचार में हम ऑमिस्तार टॉप (AMISTAR TOP) अजॉक्सिटोबिन 18.2% डब्ल्यू / डब्ल्यू +डायफेनोकोनाजोल 11.4% डब्ल्यू / डब्ल्यू एससी 16 लीटर पानीके साथ 20 मिली मिलाके छिटकाव कीजिए। और एन्थ्रेक्नोज रोग से फसल को मुक्त करना चाहिए।
- पाउडरी मिल्ड्यू : इस रोग के उपचार मर हम TATA का Contaf Plus हेक्साकोनाजों 5%SC W/W प्रोपालीन ग्लाइकाल 5.00 %W/W एमल्सिफायर-ए 3.00 %W/W,एमल्सिफायर-बी 3.00 %W/W 16 लीटर पानी में 40 मिली मिला के छिटकाव करना चाहिए।
- डाउनी मिल्ड्यू : इस रोग के उपचार में हम रसायनिक दवाई में हम मेंकोजेब कॉपर आक्सीक्लोराइड का 16 लीटर पानी में 30 से 32 ग्राम मिला के या घोल के अच्छे से छिटकाव करना चाहिए
- रेड पंपकिन कीट : इस कीट के उपचार में हम प्रतिशत कार्बोरील 02 से 03 और प्रतिशत साईपरमेंथ्रिन 0.04 से 0.05 का छिटकाव करना चाहिए। और सुंडियों के उपचार में क्लोरपायरिफॉस का 1.5 लीटर पानी में मिला के सिंचाई के माध्यम से देना होगा। लेकिन ए उपचाई आप मुख्य फसल की बुवाई के बाद ठीक 1 या 1.5 मास के बाद
- चेंपा कीट : इस कीट के नियंत्रण के लिए हमे ए उपचार करना होगा थाइमैथोक्सम 5 ग्राम 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना होगा। और इस छिटकाव के बाद 10 से 15 दिन में डाइमैथोएट 10 मि.ली. + टराइडमोरफ 10 मिली दोनों को 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना होगा।
- माइट : इस कीट के उपचार में हमे मेलाथीयॉन 30 से 35 मिलि, और इमिडाक्लोप्रिड 5 से 7 मिली 16 लीटर पानी के साथ घोल मिला के छिड़काव करना चाहिए।
- फल मक्खी : इस प्रकार के किट के उपचार के लिए हम नीम सीडस करनाल एकसट्रैट 50 ग्राम को 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना चाहिए। और 8 से 10 दिन के बाद 2 से 4 बार मैलाथियॉन 40 मिली+100 ग्राम गुड़ 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना चाहिए।
- तेला : इन तेला के उपचार में हम मेलाथीयॉन 30 से 35 मिली, और इमिडाक्लोप्रिड 5 से 7 मिली, 16 लीटर पानी के साथ मिलाके छिटकाव करना चाहिए।
तोरई की अधिक पैदावार के लिए?
तोरई की खेती (Turai Ki Kheti) में उपज की बात करे तो तुरई के बीज की बुवाई के बाद 40 से 45 दिन में तोरई के बेल (पौधे) पैदावार देने लगते है। और कई वेराइटी में 70 से 80 दिन में पहेली तोड़ाई कर शकते है।
तोरई की तोड़ाई विविध वेराइटी ऊपर निर्भर रखती है। और इस प्रकार पहेली उपज थोड़ी कम आती है बाद में 5 से 7 दिन के अंतर में बाकी की तोरई की तोड़ाई करनी चाहिए। वार्ना तोरई के फल बेल पर ज्यादा दिन रहने से बड़े हो जाते है।
और बाद में तोरई के अच्छे दाम बाजार में नहीं मिलता। इस लिए तोरई की फसल में सही वक्त पर तोड़ाई करनी बेहद जरुरी है। एक हेक्टर में से 110 से 150 क्विंटल की आस पास उपज रहती हैं।
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सारांश
नमस्ते किशान भइओ इस आर्टिकल के माध्यम से आपको तुरई की खेती (Turai Ki Kheti) में इस के बारे में बहुत कुछ जननेको मिलेगा और तुरई की खेती (Turai Ki Kheti) में कोन कोन सी वेराइटी अच्छी हे।
कैसे और कब बुवाई करे तुरई की खेती (Turai Ki Kheti) में कोन कोन सा खाद डालना चाहिए। तुरई की खेती (Turai Ki Kheti) के पौधे पे लगने वाला रोग एवं कीट इन रोग और कीट से नियंत्रण कैसे करे
तुरई की खेती (Turai Ki Kheti) की उपज एवं तोड़ाई कैसे करे वैसे बात करे तो तुरई की खेती (Turai Ki Kheti) के वारे में इस आर्टिकल में आपको बहुत कुछ जानने को मिला होगा।
इस लिए ए आर्टिकल आपको तुरई की खेती (Turai Ki Kheti) करने में बहुत हेल्प फूल होगा इस लिए हमें पता हे की ए आर्टिकल आप को बेहद पसंद आया होगा। इस लिए ए आर्टिकल को आप अपने किशान भइओ के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। इस आर्टिकल में अंत तक बने रहने के लिए आपका धन्यवाद
FAQ’s
Q-1. तोरई के पौधे (बेल) कितने दिनों में पैदावार देने लगते है ?
Answer : तोरई के पौधे (बेल) 40 से 45 दिन में पैदावार देते है और कई किस्मे 60 से 70 दिन में पैदावार देते है
Q-2. तोरई की खेती कब और कोन से मास में की जाती है ?
Answer : तोरई की खेती ग्रीष्मकालीन और वर्षाकालीन दोनों मौसम में की जाती है, ग्रीष्मकालीन (खरीफ) में जून मास में और वर्षाकालीन में जनवरी मास में की जाती है
Q-3. तोरई में कोन कोन से विटामिन और स्त्रोत होते है ?
Answer : तोरई में विटामिन ए , एवं तत्व में कैल्शियम, फॉस्फोरस और लोहा जैसे स्त्रोत भारी मात्रा में होते है
Q-4. तोरई की खेती के लिए केसी मिट्टी होनी चाहिए ?
Answer : तोरई की खेती के लिए हलकी दोमट मिट्टी, और अच्छी जलनिकासी, और भारीऊपजाव मिट्टी होनी चाहिए
Q-5. तोरई के बीज की दुरी कितने फीट की रखनी चाहिए ?
Answer : जब तोरई की बुवाई हम करते है तब 1.5 से 2 कीट और ज्यादा से ज्यादा 2 से 3 फीट की दुरी रखनी चाहिए
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