मशरूम की खेती इस तकनीक से करे तो किशान लाखो रुपये कमा शकते है जाने हिंदी में।

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दोस्तों आज हम बात करे खान पान की तो भारत में खाने के मामले में लोग बेहत जागरूक हो गए है और इसका सबसे बड़ा कारन जीवनशैली का बदलाव और नौकरी की भागदौड़ के साथ शारीरिक महेनत कमी के कारन कई प्रकार के रोगो ने जकड लिया है। इन्हे लिफेस्टाइल या जीवनशैली कहा गया है।

Mashrum Ki Kheti is Taknik Se Kare

आज के इस आर्टिकल में हम मशरूम की खेती इस तकनीक से करे (Mashrum Ki Kheti is Taknik Se Kare) तो अच्छी उपज के साथ अच्छी कमाई कर शकते है।

लोगो को भी अब पता चल गया है की शाकाहार ही में सभी प्रकार के विटामिन्स, प्रोटीन, लवण खनिज की विभिन्न फल और सब्जियों में पूर्ति हो जाती है और शाकाहारी भोजन बेहद पौस्टिक और स्वादिस्ट है।

बात करे मशरूम की तो कुश लोग मशरूम को मांशाहारी मानते है जो बिलकुल गलत है। मशरूम एक पूरीतरह शाकाहारी आहार है और इस तरह जागरूकता बढ़ रही है और इस तरह मशरूम की खपत भी बढ़ रही है।

किशानो केलिए मशरूम की खेती बहोत ही लाभदाई खेती है क्युकी ए की खेती है जी हा असल में मशरूम को अँधेरे वाले कमरे में उगाया जाता है। पोलिथिन में कम्पोस्ट डाल के और स्ट्रे में उगाया जाता है और एक के ऊपर एक या एक के ऊपर चार लेयर में लगाया जाता है।

समाजीए एक एकड़ में से चार एकड़ का या दस एकड़ तक का उत्त्पादन लिया जाता है। इसकी काम लागत के कारन छोटे और सीमांत किशान के लिए आमदनी का बढ़िया स्रोत बन गया है।

भारत में मशरूम की व्यवसायिक खेती की शुरुआत लगभग 1971 से मणि जाती है और तब मशरूम की वार्षिक पैदावार करीब 100 टन थी। मशरूम में प्रोटीन होने के कारन और उसकी स्वाद की स्वीकार्य से मशरूम की खपत 1.5 लाख टन से भी ज्यादा हो गई है। कहने का मतलब की देशवासियो को मशरूम का स्वाद काफी भा रहा है इसी लिए मशरूम की खेती किशानो को अच्छी आमदनी प्रदान कराती है।

वटामिन्स ,कार्बोहैड्रेड ,कैल्शियम और प्रोटीन से भरपूर होने की वजह से स्वास्थ्य केलिए काफी फायदेमंद तो हे ही साथ ही भारतीय जलवायु के अनुकूल और कई किस्मे भी विकसित हो जाने के कारन और पहले कुश खाश ही मौसम में ही मशरूम की उपलब्धता होती थी लेकिन अब मशरूम सालभर उपलब्ध रहता है। जिस कारन छोटे किशान, सीमांत किशान और अत्याधुनिक मशरूम प्रसंस्करण लगाने वाले बड़े किशानो का भी लाभ का सोदा बन गया है। मशरूम की खेती करने केलिए प्रशिक्षण लेना बेहत आवश्यक है और जब जानकारी सही होगी तभी तो लाभ अच्छा होगा।

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मशरूम में रखने वाली सावधानी

हरियाणा राज्य में 95% बटन मशरूम की खेती की जाती है। बटन मशरूम लगाने केलिए ओक्टोबेर से नवम्बर महीने में बटन मशरूम की खाद बनाना शुरू कर देनी चाहिए।

उसके बाद एक महीना मशरूम की खाद बनने लग जाती है एक महीने के बाद उसके अंदर स्पान मिला दिया जाता है और स्पान मिलाने के बाद पॉलीथिन में भर ले या बेड पर बिसा दे और सोइंग करले। उसके 20 दिन के बाद पूरा जाला जल जाता है सेड में रखने के बाद और इसके बाद हम केसिंग करते है।

केसिंग करने केलिए धान की राखी ले सकते है या गाला सड़ा गोबर का खाद 3 से 4 पुराना हो उसको स्टरलाइज़ करना पड़ता है फार्मिंग दवाई से स्टरलाइज़ करने के बाद आधा पोना इंच की लेयर बना देनी है उस वख्त कमरे का तापमान 20 से 25 डिग्री तापमान रख देना है और जिस टाइम कुण्डी निकल नई शुरू हो जाये तब कमरे का तापमान 14 से 18 डिग्री तापमान रख देना है।

मशरूम में 2 बीमारी आ जाती है एक डेड बबल और दुशरी रेड बबल आ जाती है इसके उपचार में डायथेन M 45 का छिड़काव कीजिए बीमारी को काबू कर शकते है।

अब ए जितनी भी जानकारिया है वो अपने जहाँ में बिठा लीजिए यही तो आपकी उन्नति की रहे है।

एक जानकारी हम ओर भी दे देते है जैसे हर प्रकार का मशरूम खाने लायक नहीं होता मशरूम की कई किस्मो तो बेहत जहरीली होती है बारिस के मौसम में उगने वाली मशरूम को कुकुरमुत्ते और शापकीछतरि भी कहते है ए है तो मशरूम की परिवार की ही पर ए खाने केलिए नहीं।

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मशरूम की किस्मे

हमरे देश में मशरूम की चार प्रकार की किस्मे प्रचलित है।

ऑयस्टर मशरूम या ढींगरी मशरूम

सफ़ेद बटन मशरूम

दूधिया मशरूम

धान के पुआल का मशरूम

वैसे तो अलग अलग मौसम केलिए अलग अलग किस्मे है लेकिन काम खर्च में मशरूम को पनपने लायक वातावरण तैयार करके एक ही मशरूम की उपज को साल भर लिया जाता है।

सबसे ज्यादा लाभ देनेवाली किस्म ऑयस्टर यानि ढींगरी मशरूम की किस्म है।

मशरूम की खेती के फायदे

दोस्तों ऑयस्टर मशरूम की खेती करने वाले हरियाना के बेहत जागरूक किशान विकास वर्मा से बात करके हमें पता चला की ऑयस्टर मशरूम करके कितना पैसा कमाया सकता है।

विकास वर्मा ने धान, गेहूँ, जैसी पारम्परिक खेती किया करते थे फिर उन्हें पता चला मशरूम के बारे में और ए जुड़े मशरूम की खेती से। लेकिनं जो पहले जो सुना सुनाया था उससे मशरूम खेती करनी चालू करदी किन्तु ऐसी सफलता थोड़ी न मिलती है।

मशरूम की खेती विकास वर्मा 2016 से कर रहे है शुरुआत में H.U.UNIVERCITY से पर्शिक्षण लिया और धीरे धीरे मशरूम की खेती चालू की और विकास वर्मा के पिताजी ने भी सपोर्ट किया।

एक पॉलीथिन की बेग में से तीन से चार किलोग्राम ऑयस्टर मशरूम उत्त्पादन और एक बेग का पॉलीथिन, कूड़ा, कम्पोस्ट और स्पोन्ड का कुल खर्चा 20 से 30 रूपया 10 किलोग्राम पॉलीथिन की बेग की लागत आति है। ऑयस्टर मशरूम की एक बेग की 400 रुपये तक का प्रॉफिट मिल जाता है।

एक आकलन बताता है की ऑयस्टर मशरूम एक पॉलीथिन की बेग का खर्चा 100 रूपया आएगा और ऑयस्टर मशरूम एक बेग बाजार में 1000 से 1100 रूपया मिलेगा। आसान भाषा में एक बेग से 900 से 1000 रुपये का साफ मुनाफा।

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