कपास की खेती में लगने वाले रोग | Kapas Ki Kheti Me Lagne Vale Rog

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कपास की खेती में लगने वाले रोग | (Kapas Ki Kheti Me Lagne Vale Rog) : हमारे देश भारत में कई राज्य में कपास (कॉटन) की खेती किशान करते है और अधिक मुनाफा भी प्राप्त करते है। विश्व भर के देशो में से चीन का प्रथम स्थान है और दूसरे स्थान पर हमारा देश भारत है। कपास की खेती को सफेद सोना की खेती भी कहते है।

कपास के बीज को अलग कर के रूह का रेशा बनाते है और कापड में उपयोग में लेते है और जो कपास के बीज है उस का तेल निकाल लेते है और उस तेल को विविध सब्ज़ी बना ने में उपयोगी होता है।

तेल निकाल ने के बाद बीज का जो भी हिच्छा बचता है उस हिच्छे का पशु आहार बनाने में उपयोग में लेते है। इस प्रकार कपास मानव जीवन में बहुत उपयोगी फसल है।

आज के इस आर्टिकल में कपास की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उचित माना जाता है, कपास की खेत तैयारी कैसे करनी चाहिए। कपास के पौधे को कैसा जलवायु एवं तापमान अनुकूल आता है।

कपास की उन्नत (प्रसिद्ध) किस्मे कौन कौन सी है। कपास के बीज कब और कैसे बुवाई करे, कपास के पौधे से पौधे की दुरी कितनी रखनी चाहिए। कपास की खेती में सिंचाई कब और कैसे करे, कपास की खेती में कौन कौन सा रोग एवं कीट अटेक करते है।

कपास की खेती एक हेक्टर में करे तो किशान उपज कितनी प्राप्त कर शकते है। बात करे तो कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी इस आर्टिकल में मिल जाएगी। इस के लिए आप को इस आर्टिकल के अंत तक बने रहना होगा।

Kapas Ki Kheti Me Lagne Vale Rog

कपास की खेती में किन किन बातो का ध्यान रखना चाहिए ?

कपास की खेती आम तो सभी प्रकार की मिट्टी में कर शकते है लेकिन कपास के पौधे की अच्छी विकास एवं ज्यादा उपज के लिए कपास की खेती बलुई दोमट या तो काली मिट्टी में करनी चाहिए। कपास की खेती जीस मिट्टी में करे इस मिट्टी का पी एच् मान 5.5 से लेकर 8.5 के बीच का होना चाहिए।

कपास की खेती में जल निकास की अच्छी वयवस्था होनी चाहिए। कपास की खेती आज के ज़माने में किशान बहुत करते है और उपज के साथ मुनाफा भी अधिक करते है।

  • कपास की खेती में खेत तैयारी में दो से तीन बार गहरी जुताई करनी चाहिए और आखरी जुताई के बाद एक हेक्टर में 12 से 15 टन सड़ा हुआ गोबर अच्छे से मिट्टी में मिला देना चाहिए इन के बाद पाटा चलाके जमीन को समतल कर लेना चाहिए। कपास की खेती में जल भराव अच्छा नहीं होता इस लिए जल निकास की अच्छी वयवस्था करनी चाहिए।
  • कपास की खेती उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय दोनों विस्तार में की जाती है। आज के ज़माने में कई सारी उन्नत किस्मे है इस की खेती कर के अच्छी उपज भी प्राप्त कर शकते है और कपास की खेती में कपास के बीज को अंकुरित होने के लिए 20°C तापमान अच्छा माना जाता है। और कपास की फसल की अच्छी विकास के लिए 20°C से 30°C तक का तापमान अच्छा माना जाता है। और कपास की खेती में अधिक तम तापमान 30°C से 35°C तक का शाहन कर शकता है इस के ऊपर का तापमान कपास की खेती को नुकशान पहुंचा शकता है।
  • कपास की खेती में आज के ज़माने में कई सारी उन्नत किस्मे है इन में से कुछ किस्मे का नाम कुछ इस प्रकार के है अजीत 111, जयभेरी, वेदा का धर्मा गोल्ड, एटीएम, सिक्सर GK 231 BG 2, KCH 189 BG 2, अजूबा, अजीत 155, इन के अलावा भी कपास की प्रसिद्ध किस्मे है उस के बीज की बुवाई कर के किशान अच्छी उपज एवं अच्छा मुनाफा प्राप्त कर शकते है
  • कपास के बीज की बुवाई कतार में करते है। कपास के बीज की बुवाई जून माह में करते है। और पियत की व्यवस्था वाले विस्तार में मैं माह में भी बीज बुवाई करते है। कपास की खेती में कतार से कतार की दुरी कपास के किस्मे पर रखनी चाहिए। जब की आप ने बी टी कपास की किस्मे की बुवाई करे तो कतार से कतार की दुरी 4.5 फिट और पौधे से पौधे की दुरी 1.5 से 2 फिट रख शकते है और इन का माप देशी किस्मे के 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दुरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए
  • कपास की खेती में खरपतवार नियंत्रण रखना बेहद जरूरी है। कपास की खेती में खरपतवार नियंत्रण रखने से कपास के पौधे अच्छे से वृद्धि करते है और अच्छी पैदावार भी प्राप्त कर शकते है। कपास की फसल में बीन जरुरी घास बहुत अंकुरित होता है इस घास को समय सर निदाई गुड़ाई कर के कपास की फसल में से निकाल देना चाहिए। ज्यादा घास के कारण कई प्रकार के कीट दिखाई देते है और कपास के पौधे को बहुत नुकशान पहुंचाते है। इस लिए उपज में भारी नुकशान किशान को भुगतना पड़ता है और उपज भी कम प्राप्त होती है इस लिए निदाई गुड़ाई कर के कपास के पौधे को निदान से या बीन जरुरी घास से मुक्त रखना चाहिए। अच्छी उपज एवं कपास के पौधे की अच्छी वृद्धि के हेतु।
  • कपास की खेती में जरुरियात मुजब खाद देना चाहिए कपास के पौधे की अच्छी विकास एवं अधिक उपज के हेतु। कपास की खेती में खाद अच्छे से सड़ा गोबर, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, यूरिया, एस.एस.पी, और डी.ए.पी इस प्रकार के खाद कपास की फसल में दे शकते है। कपास की खेती में एक हेक्टर के हिसाब से खाद गोबर की मात्रा 13 से 15 टन देना चाहिए। नाइट्रोजन 70 से 80 किलोग्राम एवं फास्फोरस 35 से 40 किलोग्राम पोटाश ज़मीन की पी एच पर कपास की खेती में देना चाहिए। इन के अलावा यूरिया 90 से 100 किलोग्राम और डीएपी 90 से 100 किलोग्राम देना चाहिए।
  • कपास की खेती में सिंचाई की कम आवश्यता होती है। कपास के बीज बुवाई के बाद तीन से चार दिन में अंकुरित हो जाता है। और बारिश के मौसम में कपास की फसल को सिंचाई की कम आवश्यकता होती है और गर्मी के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतर में सिंचाई करनी चाहिए। कपास की खेती में जब कपास के पौधे पर फूल दिखाई दे तब सिंचाई अवश्य करे ताकि फूल से टिंडा अच्छा अंकुरित हो शके। कपास की खेती में ज्यादा सिंचाई करने से कपास के पौधे पर लगे टिंडा में सड़न की समस्या होती है। इस लिए कपास की खेती में जरुरियात मुजब सिंचाई करनी चाहिए।
  • कपास की खेती में उपज विविध किस्मे पर निर्भर होती है। कपास की खेती अगर आप ने एक हेक्टर में करे तो देशी किस्मे है तो 20 से लेकर 25 क्विंटल तक की उपज प्राप्त कर शकते है और संकर किस्मे के बीज की बुवाई की है तो 25 से लेकर 35 क्विंटल तक की उपज प्राप्त हो शक्ती है और बी टी कपास के बीज की बुवाई की है तो 35 से लेकर 40 क्विंटल या उन से अधिक 40 से 50 क्विंटल तक की भी उपज प्राप्त कर शकते है।

कपास की खेती में लगने वाले रोग एवं कीट और इस रोग एवं कीट का उपचार

कपास की खेती में कई सारे रोग एवं कीट अटेक करते है और इस रोग एवं कीट का सही समय उपचार करना चाहिए। वार्ना कपास की खेती में किशान को भारी नुकशान भुगतना पड़ता है। और उपज में भारी गिरावट देखने को मिलेगी और मुनाफा कम प्राप्त होगा और ज्यादा नुकशान हो शकता है।

कपास की खेती में जब कपास के पौधे पर कोई रोग या कीट दिखाई दे तब योग्य दवाई का छिटकाव कर के कपास के पौधे को इस रोग एवं किट से मुक्त करना चाहिए। कपास की फसल में ज्यादा तर इस प्रकार के रोग एवं किट दिखाई देते है।

जड़ गलन, आल्टरनेरिया, एंथ्राकनोस, पत्तों पर धब्बा, लिली सुंडी, लाल या गुलाबी सुंडी, तेला, मिली बग, सफेद मक्खी, मुरझाना, थ्रिप्स कथेरी, धब्बेदार सुंडी, कपास की खेती में इस प्रकार के रोग एवं कीट अटेक करते है।

  • जड़ गलन : इस रोग का अटेक पौधे के जड़ो में होता है। इस रोग के कारण पौधे की जड़ो गल के सड़ जाती है। जब इस रोग से पौधा ग्रस्त हो जाता है तब पौधे की जड़ो कमजोर हो जाती है बाद में पौधा जमीन में से जरूती पोषक तत्व नहीं ले पाते और धीरे धीरे पौधा सूखने लगता है और एक दिन सुख के नष्ट हो जाता है।
  • उपचार : इस रोग नियंतरण के लिए कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50% WP एक हेक्टर दीठ एक किलोग्राम 400 लीटर पानीके साथ घोल मिलके पर एक पौधे पीर 50मिली ग्राम पोधेकी जाड़मे सिंचाई कीजिए
  • आल्टरनेरिया : इस बीमारी से कपास के पौधे के पतों पर देखने को मिलेगी। इस के कारण पतों पर भूरे रंग के और पीले रंग के धब्बे दिखाई देते है और ए धब्बे बढ़ते जाते है और आखिर में पुरे पतों पर हो जाता हे और पता पौधे से सुख के गिर जाता है। इस के कारण कपास के टिंडे भी गलने लगते है। इस रोग से पतियों पर धब्बे दिखाई देते है और इस बीमारी से पाटिया धीरे धीरे सूखने लगाती है। इस रोग के मुख्य कारण है कुकुमेरिना जैसी अल्टरनेरिया फफूंदी इस के कारण ए रोग फैलते है इस रोग को नियंत्रण रखने के लिए उच्च स्तर का तापमान बहुत अच्छा माना जाता है।
  • उपचार : इस बीमारी के उपचार में ऑमिस्तार टॉप (AMISTAR TOP) अजॉक्सिटोबिन 18.2% डब्ल्यू / डब्ल्यू +डायफेनोकोनाजोल 11.4% डब्ल्यू / डब्ल्यू एससी 16 लीटर पानीके साथ 20 मिली मिलाके छिटकाव कीजिए। और एन्थ्रेक्नोज रोग से फसल को मुक्ति दीजिए।
  • इस बीमारी की रोकथाम के लिए टैबुकोनाज़ोल 1 मि.ली. या ट्राइफलोकसीट्रोबिन+ टैबुकोनाज़ोल 0.6 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे बिजाई के 60वें, 90वें, और 120वें दिन बाद करें। यदि बीमारी खेत में दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कप्तान 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें या कार्बेनडाज़िम 12 प्रतिशत + मैनकोज़ेब 63 प्रतिशत डब्लयू पी 25 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
  • एंथ्राकनोस : करेला की खेती में एन्थ्रेक्नोज रोग लगता है तब फसल की पतिया पर भूरे धब्बे दिखाय देते है। ए रोग कलेटोट्रीचम लगेनरियम फफूंदी के माध्यम से फैलता है। इस रोग लगाने से पातीय धीरे धीरे जमीन पर गिरने लगाती है।
  • उपचार : इन रोग के उपचार में हम ऑमिस्तार टॉप (AMISTAR TOP) अजॉक्सिटोबिन 18.2% डब्ल्यू / डब्ल्यू +डायफेनोकोनाजोल 11.4% डब्ल्यू / डब्ल्यू एससी 16 लीटर पानीके साथ 20 मिली मिलाके छिटकाव कीजिए। और एन्थ्रेक्नोज रोग से फसल को मुक्त करना चाहिए।
  • पत्तों पर धब्बा : इस बीमारी से कपास के पतों पर लाल रंग के धब्बे दिखाई देते है और बाद में वे धब्बे सफेद रंग के या तो स्लेटी रंग के हो जाते है।
  • उपचार : इस बीमारी के उपचार में कोरोमंडल कंपनी का जटायु क्लोरोथालोनिल 75% WP 30 मिलीग्राम 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए। 15 दिन में दो बार छिटकाव करना चाहिए
  • लिली सुंडी : इस सुंडी जूथ में अटेक करते है इस सुंडी का अटेक मुख्य तवे पौधे के पतों के ऊपरी हिच्छे में करते है। इस सुंडी का अटेक ज्यादा हो तो सारे के सारे पतों नष्ट हो जाता है। इस सुंडी का अंडा पतों पर दिखाई देते है और इस अंडे का रंग भूरा होता है
  • उपचार : इस के उपचार में इस लिली इली के उपचाई में हम एक्यूरेट कम्पनी का अटैक प्लस इमामेकेटिन बेंजोएट टेक्नीकल्स 2.00% W/W बलायक 33.00% W/W मिथाइल पाईरोलीडॉन 28.70% W/W 20 से 25 ऐ मेल 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए।
  • लाल या गुलाबी सुंडी : इस सुंडी के अटेक से कपास की फसल में भरी नुकशान होता है। कपास की फसल में लाल या गुलाबी सुंडी कपास के बीज को खाते है और टिंडे को भी खाते है इस के अटेक से उपज कम हो जाती है
  • उपचार : इस के नियंत्रण में टाटा कंपनी का जशन सुपर प्रोफेनोफोस 40% सायपरमेथ्रिन 4% E.C. का 30 ग्राम 16 लीटर पानी में अच्छे से मिला के छिटकाव करना चाहिए।
  • तेला : इस किट की वजसे पौधे की पत्ती मुड़ने लगाती हे और धीरे धीरे पौधा वाइरस ग्रस्त हो जाता है
  • उपचार : इस रोग नियंतरण के लिए यूपीएल कम्पनीका उलाला फलेको मिड 50% SG 16 लीटर पानी के साथ 8 ग्राम कर के 15 दिन में दो छिटकाव करे
  • मिली बग : इस कीट का मुख्य कार्य है पौधे में से रस चूस लेते है। इस कीट को आप पतों के ऊपर दिखाई देते है। और इस बग का रंग सफेद होता है।
  • उपचार : इस कीट के नियंत्रण में आप पाइरीथैरीओड्स 30 से 40 ग्राम 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव कर शकते है
  • सफेद मक्खी : इस किट की वजे से किशान को उपज में भारी नुकशान होता है। इस कीट का मुख्य कार्य है मादा मक्खी फल के ऊपरी हिच्छे में अंडे देती है और इन अंडे मेसे सुजा निकल के सीधे फल को खाते है और फल को बिगाड़ ते है।
  • उपचार : इस प्रकार के किट के उपचार के लिए हम नीम सीडस करनाल एकसट्रैट 50 ग्राम को 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना चाहिए। और 8 से 10 दिन के बाद 2 से 4 बार मैलाथियॉन 40 मिली+100 ग्राम गुड़ 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना चाहिए।
  • मुरझाना : इस के कारण पौधे पीले पड़ जाते है। और धीरे धीरे पौधे से पतों गिरने लगते है। इस पौधे में टिंडा जल्द लगते है। इस टिंडे की साईज छोटी छोटी होती है। इस का अटेक किसी भी वक्त हो शकता है
  • उपचार : इस के उपचार में ट्राइकोडरमा विराइड फॉरमूलेशन 4 ग्राम से 1 किलो बीज के दर से उपचार करना चाहिए। इन के अलावा थायोफैनेट मिथाइल और यूरिया योग्य मात्रा में सिंचाई के माध्यम से कपास के पौधे की जड़ में देना चाहिए
  • थ्रिप्स कथेरी : इस किट की वजेसे पौधे की पत्ती जमीन की तरफ मुड़ने लगती है। इस किट की वजसे पौधे की पत्ती के निचले हीचे में पान कथीरी दिखती है और पौधे की पत्ती कोकड़वा ने लगते है
  • उपचार : इस रोग नियंतरण के लिए बयार कंपनी का रीजैंट थिप्रोनिल 5% और पीआई कम्पनी का कोलफोर्स और इथियोन 40% + साईपर मेथिरिन 4%EC 16 लीटर पानी के साथ 35 मिलीग्राम
  • धब्बेदार सुंडी : इस सुंडी के शरीर पर काले रंग की धारिया होती है।
  • इसकी सुंडी या लार्वा हल्के हरे काले चमकदार रंग का होता है और शरीर पर काले रंग की धारियां होती हैं। सुंडी के हमले के कारण फूल निकलने से पहले ही टहनियां सूख जाती हैं और फिर झड़ जाती हैं। यह टिंडों में छेद कर देती हैं और फिर टिंडे गल जाते हैं।
  • यदि इसका हमला दिखे तो रोकथाम के लिए प्रोफैनोफॉस 50 ई सी 500 मि.ली. को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
  • उपचार : धब्बेदार सुंडी के नियंत्रण केलिए सीज़नता सीज़ंटा कंपनी का प्रोक्लेम ”एमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG 16 लीटर पानी में 10 ग्राम घोल बनाकर 15 दिन में दो बार छिड़काव कर दीजिए।
  • जड़ व तना खानेवाली इल्ली : इस किट की वजे से तना में जो नया अंकुर फूटते है उसे खाते है और बेल की जड़ो में जाकर जेड भी खाते है बाद में पौधा जड़ से जरूरी खोराक नहीं ले पाता और पौधा धीरे धीरे सुख के नष्ट हो जाता है।
  • उपचार : इस कीट के नियंत्रण में हम 30 किलोग्राम, कार्बोफूरोन 8 किलोग्राम एक हेक्टेयर में दे शकते है सिंचाई के माध्यम से | खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु 1.25% लीटर, फिप्रोनिल या क्लोरोपाइरीफोस 20% I/C 6 लीटर एक हेक्टेयर में दे शकते है सिंचाई के द्वारा

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FAQ’s

Q-1. कपास की खेती कौन से माह में करनी चाहिए ?

Answer : कपास की खेती जून माह में करनी चाहिए

Q-2. कपास की फसल कितने दिनों की होती है ?

Answer : कपास की फसल 180 से 190 दिनों की होती है

Q-3. कपास की खेती के लिए कौन सी मिट्टी सब से अच्छी मानी जाती है ?

Answer : कपास की खेती के लिए बलुई दोमट या काली मिट्टी सब से अच्छी मानी जाती है

Q-4. विश्व भर में कपास की खेती में प्रथम स्थान किस देश का है ?

Answer : विश्व भर में चीन सब से ज्यादा कपास की खेती करते है और दूसरा स्थान हमारे देश भारत का है

Q-5. कपास का जन्मदाता देश कौन है ?

Answer : कपास का जन्मदाता देश भारत है

सारांश

नमस्ते किशान भाइओ इस आर्टिकल के माध्यम से आपको कपास की खेती में कौन कौन सा खाद डालना होगा और कब देना होगा इस के बारे में बारीक़ से जानकारी मिलेगी और कपास की खेती के लिए कैसी मिट्टी की पसंदगी करनी चाहिए, कपास के पौधे को कैसा जलवायु एवं तापमान अनुकूल आता है।

कपास की उन्नत (प्रसिद्ध) किस्मे कौन कौन सी है, कपास की फसल में कौन कौन सा रोग एवं कीट अटेक करते है, और इस रोग एवं कीट का उपचार कैसे करे, कपास के पौधे को कौन सा खाद एवं कब देना चाहिए, कपास की खेती एक हेक्टर में करे तो कितनी उपज प्राप्त कर शकते है।

बात करे तो कपास की जानकारी इस आर्टिकल में सारी मिल जाएगी। हमे पता है की ए आर्टिकल आप को कपास की खेती के लिए बहुत हेल्पफुल होगा। और ए आर्टिकल आपको बहुत पसंद भी आया होगा।

इस लिए इस आर्टिकल को अपने सबंधी एवं मित्रो और किशान भाई को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। इस आर्टिकल के अंत तक बने रहने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद

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नमस्कार किसान मित्रो, में Mavji Shekh आपका “iKhedutPutra” ब्लॉग पर तहेदिल से स्वागत करता हूँ। मैं अपने बारे में बताऊ तो मैंने अपना ग्रेजुएशन B.SC Agri में जूनागढ़ गुजरात से पूरा किया है। फ़िलहाल में अपना काम फार्मिंग के साथ साथ एग्रीकल्चर ब्लॉग पर किसानो को हेल्पफुल कंटेंट लिखता हु।

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