नमस्ते किशान भाईयो आज के इस आर्टिकल में मटर में कौन सा खाद देना चाहिए? (Matar Me kon Sa Khad Dena Chahia) इन के बारे में बारीक़ से बात करेंगे और मटर की खेती की संपूर्ण जानकारी इस आर्टिकल में मिलेगी। मटर को एक दलहनी फसल भी कहा जाता है।
मटर की खेती कम समय में अधिक मुनाफा के हेतु भी की जाती है। मटर में राइजोबियम नाम के जीवाणु बड़ी मात्रा में मौजूद होता है। इस राइजोबियम जीवाणु से जमीन की उपजाऊ शक्ती बढ़ती है बाद में जो भी फसल उगाई जाए उस जमीन में उपज अधिक प्राप्त होती है।
मटर की खेती अक्टूबर महीना में या नवंबर महीना में आगेती खेती की जाए तो मटर की अच्छी उपज एवं अच्छा मुनाफा भी प्राप्त कर शकते है। मटर को सब्जी बनाने में उपयोग में लेते है और मटर को पक जाने पर मटर के दाने को दाल भी बनाई जाती है।
मटर में फास्फोरस, विटामिन एवं आयरन अधिक मात्रा में पाए जाते है। मटर के पौधे को पशु आहार में उपयोगी है। इस प्रकार मटर मानव शरीर के साथ साथ पशु आहार एवं जमीन की उपजाऊ क्षमाता (शक्ती) बढ़ाते है।
आज के इस आर्टिकल में मटर की फसल के बारे में आप के मन में जो भी सवाल है इन सारे के सारे सवाल का जवाब इस आर्टिकल के अंत तक मिल जाएगा। बात करे तो मटर की खेती के लिए कैसी मिट्टी की आवश्यकता होती है। खेती की तैयारी कैसे करनी चाहिए। कैसा जलवायु एवं तापमान अनुकूल होता है।
मटर की प्रसिद्ध (उन्नत) किस्मे कौन कौन सी है। मटर के बीज बुवाई कैसे करे। मटर की खेती में कौन सा खाद (Matar Me kon Sa Khad Dena Chahia) देना चाहिए। मटर की खेती में लगने वाला रोग एवं कीट इन के उपचार कैसे करे। बात करे तो मटर की खेती की बारीक़ से बात करेंगे।
मटर की खेती की संपूर्ण जानकारी इस आर्टिकल में दी जाएगी। इस के लिए इस आर्टिकल में अंत तक बने रहे।
मटर की खेती में उपयुक्त मिट्टी कौन सी है ?
मटर की फसल सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती है। लेकिन मटर के पौधे का अच्छा विकास के लिए एवं मटर की अच्छी उपज के लिए मटर की फसल रेतीली मिट्टी में करनी चाहिए।
इन के अलावा चिकनी मिट्टी में भी मटर की फसल अच्छे से कर शकते है। मटर की फसल जीस मिट्टी में करे इस मिट्टी का पी एच मान 5.5 से 7.5 के बिच का होना बेहद जरूरी है।
मटर की खेती में खेत तैयारी कैसे करनी चाहिए ?
मटर की खेती में दो से तीन बार गहरी जुताई ट्रेक्टर की मदद से कर लेनी चाहिए। इन के बाद आखरी जुताई से पहेले वर्मीकम्पोष्ट या गोबर की खाद डाल के अच्छे से मिट्टी में मिला देनी चाहिए।
फिर पाटा चलाके जमीन को समतल कर लेना चाहिए। ताकि जल भराव की समस्या टल जाए। मटर की खेती में जल निकास की अच्छी वयवस्था होनी चाहिए।
मटर की फसल को केसा जलवायु एवं तापमान अनुरूप आता है ?
मटर की खेती को अनुरूप जलवायु समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय माना जाता है। मटर के पौधे शर्दी के मौसम में अच्छे से विकास करता है। मटर की फसल ठंड जलवायु में अच्छे से वृद्धि करते है। मटर के पौधे को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती।
मटर की खेती में ज्यादा गर्मी के कारण पौधे की विकास रुक जाती है और उपज भी कम प्राप्त होती है। मटर के पौधे ठंड में पड़ने वाला पाला आसानीसे सहन कर शकता है।
मटर के पौधे को 8°C तक के तापमान में भी अच्छे से विकास करते है और अधिक तापमान 25°C तक का अच्छा माना जाता है इन से अधिक तापमान मटर की खेती को नुकशान कारक होता है। मटर के पौधे ठंडा जलवायु में अच्छे से वृद्धि करता है।
मटर की उन्नत किस्में कौन कौन सी है ?
मटर की खेती से कम समय में अधिक मुनाफा कर शकते है। मटर फ्रांस से आई एक विदेशी प्रजाति है। मटर की कई सारी उन्नत किस्मे है।
इन में से आर्किल, वी एल 7, बी.एल, लिंकन, जे एम 4, बोनविले, ईसी 33866, पी एम 2, ई 6, मालवीय मटर 2, जवाहर पी 4, पंजाब 89, पंत सब्जी मटर, पूसा प्रभात, पंत सब्जी मटर 5, इन के अलावा भी कई उन्नत किस्मे है। इन प्रसिद्ध किस्मे की बुवाई कर के किशान अधिक मुनाफा करते है।
आर्किल : यह फ्रांस से आई विदेशी प्रजाति है। इस किस्मे की उपज अधिक प्राप्त होती है। इस के दाने ताजा और सूखा बाजार में बेचते है। इस किस्मे की पहेली तुड़ाई 60 से 70 दिन के बाद कर शकते है। इस किस्मे की उपज एक हेक्टर में से 9 से 12 टन तक की होती है
बी.एल : इस प्रजाति को विवेकानंद पर्वतीय कृषि द्वारा तैयार की गई किस्मे है। इस किस्मे में उपज एक हेक्टर में से 8 से 10 टन प्राप्त होती है
लिंकन : इस किस्मे के पौधे की लम्बाई छोटी होती है। इस किस्मे के बीज बुवाई के बाद 85 से 95 दिन के बाद उपज देते है। इस किस्मे के पौधे की फलिया हरे रंग के होते है। इन फलिया में दाने बहुत होते है एक फलिया में 9 से 10 दाने मौजूद होते है। वे दाने खाने में बड़ा स्वादिष्ट होता है। इस किस्मे की बुवाई ज्यादा तर पहाड़ी विस्तार में करते है
जे एम 4 : इस किस्मे को जबलपुर में संकर टी 19 और लिटिल मार्वल से प्रसिद्ध पीड़ी वरणों द्वारा तैयार की गई किस्मे है। इस किस्मे की तुड़ाई 65 से 75 दिन बाद कर शकते है। इन के फलिया में दाने थोड़े कम प्राप्त होते है। इस किस्मे की बुवाई एक हेक्टर में की है तो उपज 7 से 8 टन तक की प्राप्त होती है
बोनविले : इस किस्मे की बुवाई करने से उपज अधिक प्राप्त कर शकते है। इस किस्मे के बीज बुवाई के बाद 65 से 75 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्मे की फलिया में दाने बहुत बड़े और ज्यादा मौजूद होता है। इस किस्मे की बुवाई एक हेक्टर में करे तो उपज 80 से 100 क्विंटल तक की प्राप्त होती है
ईसी 33866 : इस किस्मे को आनुवंशिक सामग्री से वर्ण द्वारा जबलपुर में तैयार की गई किस्मे है। इस किस्मे की बुवाई किशान अगेती किस्मे के रूप में करते है। इस किस्मे में फलिया जल्द आती है बुवाई के बाद 40 से 45 दिनों के बाद तोड़ाई कर शकते है। इस किस्मे की बुवाई एक हेक्टर में करे तो 3 से 4 टन उपज प्राप्त कर शकते है
पी एम 2 : इस किस्मे को पंतनगर में संकर अर्ली बैजर से वंशावली वरण द्वारा तैयार की गई किस्मे है। इस किस्मे की बुवाई के बाद 55 से 60 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्मे चूर्णिल फफूंदी के प्रति अधिक ग्रहणशील है। किस्मे की बुवाई एक हेक्टर में करे तो 7 से 9 टन उपज प्राप्त कर शकते है।
मालवीय मटर 2 : इस किस्मे की बुवाई ज्यादा तर भारत के पूर्व के मैदानी विस्तार में किशान करते है। इस किस्मे को पूरी तरह से पक के तैयार होने में 90 से 110 दिन तक का समय लगता है। इस किस्मे के पौधे में रोग प्रतिकारक शक्ती अधिक होती है। इस किस्मे के पौधे में रतुआ रोग एवं सफ़ेद फफूंदी कम अटेक करती है। इस किस्मे की बुवाई एक हेक्टर में की जाए तो इन में से 30 से 35 क्विंटल तक की उपज प्राप्त कर शकते है
जवाहर पी 4 : इस किस्मे को जबलपुर में तैयार की गई किस्मे है इस किस्मे को पहाड़ी विस्तार में ज्यादा बुवाई करते है। इस किस्मे की खाशियत है की इस के पौधे पर चूर्णिल फफूंदी के सामने बहुत प्रतिरोधक है। इन किस्मे की तुड़ाई 60 से 70 दिन बाद कर शकते है। इस किस्मे की बुवाई एक हेक्टर में करे तो उपज 7 से 9 टन तक की होती है
पंजाब 89 : इस किस्मे के पौधे पर फलिया जोड़े में आती है। इस किस्मे की बुवाई की है तो इस की तोड़ाई 85 से 95 दिन के बाद कर शकते है। इस किस्मे की बुवाई एक हेक्टर में करे तो उपज 60 से 65 क्विंटल तक की प्राप्त कर शकते है
पंत सब्जी मटर : इस किस्मे में फलिया जल्द आती है। इस किस्मे के पौधे पर लगने वाली फलिया बहुत लम्बी होती है और एक फलिया में से दाने 9 से 10 निकलते है। इस किस्मे के हरे फलिया की तुड़ाई की जाए तो एक हेक्टर में से लगभग 9 से 10 टन तक की उपज प्राप्त कर शकते है।
पूसा प्रभात : मटर की यह एक प्रसिद्ध किस्मे है। इस किस्मे की बुवाई ज्यादा तर किशान कम समय में तैयार होने वाली किस्मे है इस किस्मे की बुवाई ज्यादा तर हमारे देश भारत के पूर्व राज्यों में किशान करते है। इस किस्मे की कटाई देर से कर शक्ति है इस किस्मे की कटाई 90 से 110 दिन बाद कर शकते है। इस किस्मे की बुवाई एक हेक्टर में करे तो 45 से 55 क्विंटल तक की उपज प्राप्त कर शकते है
पंत सब्जी मटर 5 : इस किस्मे की बुवाई जल्द पक के तैयार हो जाती है। इस किस्मे के बीज की बुवाई पहाड़ी विस्तार में और मैदानी विस्तार में करते है। इस किस्मे में चूर्णिल फफूंदी रोग से प्रतिरोधक होती है। इस किस्मे की पहेली तुड़ाई 55 से 65 दिन बाद कर शकते है और इस किस्मे की बुवाई एक हेक्टर में की है तो उपज 95 से 110 क्विंटल तक की प्राप्त होती है
अगेती मटर की बुवाई कब करें ?
मटर की अगेती फसल कर के कम समय में अधिक मुनाफा कर शकते है। मटर की खेती अक्टूबर महीने में करते है या तो नवंबर महीने में भी कर शकते है। मटर की खेती रेतीली मिट्टी में अच्छे से विकास करती है। और जीस मिट्टी में करे उस मिट्टी का पी एच मान 5.5 से 7.5 के बिच का अच्छा मना जाता है।
मटर के बीज थोड़ा सख्त होता है। इस लिए बीज को अंकुरित होने में 25°C तक के तापमान की आवश्यकता होती है और मटर की खेती में पौधे की अच्छी विकास के लिए 8°C से 20°C तक का तापमान अच्छा माना जाता है और इस तापमान में मटर के पौधे अच्छी वृद्धि करते है
मटर में कौन सा खाद देना चाहिए ? | (Matar Me kon Sa Khad Dena Chahia)
मटर की फसल में खाद देना बेहद जरूरी है। मटर की खेती में मटर के पौधे की अच्छी विकास के लिए और मटर की अच्छी उपज (पैदावार) के लिए खाद डालना चाहिए। मटर की खेती में सड़ा हुआ गोबर, नाइट्रोजन, फास्फोरस, एवं पोटेशियम, यूरिया, डीएपी, और पोटाश भी देना चाहिए। मटर की खेती में एक हेक्टर में करे तो खाद की माता इस प्रकार कर शकते है।
नाइट्रोजन 50 किलोग्राम और फास्फोरस 60 किलोग्राम एवं यूरिया 100 किलोग्राम एवं एसएसपी 370 किलोग्राम और पोटाश जरुरी मुजब देना चाहिए। मटर की बुवाई जीस मिट्टी में करे उस मिट्टी की पहेले जांच परख जरूर कर लेनी चाहिए। ताकि मिट्टी में जो भी पोषक तत्व कम हे वही पोषक तत्व जरुरी मात्रा में दे शके। इस प्रकार के खाद मटर की फसल में दे शकते है।
मटर की खेती में रोग एवं कीट नियंत्रण
मटर की फसल में कई प्रकार के रोग एवं कीट अटेक करते है। इस रोग एवं कीट का सही समय नियंतरण नहीं करते तब मटर की फसल में बहुत नुकशान भुगतना पड़ता है।
किशान भाई को। मटर के पौधे पर कोई रोग या कीट का अटेक दिखे तब तुरंत योग्य दवाई का छिड़काव कर के मटर के पौधे को इस रोग एवं कीट से मुक्त करना चाहिए। मटर की फसल में इस प्रकार के रोग एवं किट ज्यादा तर दिखाई देते है।
रतुआ, चूर्णी फफूंदी, हरी इली, तुलासिता, चेपा, फलिया छेदक इली, इस प्रकार के रोग एवं कीट मटर की फसल में दिखाई देते है
रतुआ : इस रोग को मटर के पौधे के पतों पर देखने को मिलेगा यह रोग मुख्य तवे पतों पर अटेक करता है। इस रोग से ग्रसित पौधे के पतों पीले रंग के और फफोले दिखाई देते है। इस रोग से ग्रसित पौधे पर पतों पीले और पौधे दे पतों जड़ ने लगती है। पौधे से सारे पतों पीले होकर गीर जाने से पौधा भी धीरे धीरे सुख के नष्ट हो जाता है।
नियंत्रण : इस रोग के नियंतरण में नीम का तेल का छिड़काव कर शकते है और किसी कृषि संस्था की मुलाकात लेकर योग्य रासायनिक दवाई का भी छिटकाव कर शकते है और इस रोग से मटर के पौधे को मुक्त कर शकते है।
चूर्णी फफूंदी : इस रोग का अटेक मटर के पौधे में निचे से ऊपर की तरफ होता है। इस रोग के अटेक से मटर के पौधे के पतों पर सफेद रंग के धब्बे दिखाई देते है। इस रोग से प्रभावित मटर के पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
नियंत्रण : इस के नियंत्रण में कार्बेन्डाजिम और थायोफेनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू पी 40 ग्राम 16 लीटर पानी में मिला के छिड़काव करना चाहिए।
हरी इली : इस हरी इली के कारण पौधे में जो फूल एवं फल है इसे बहुत नुकशान करते है। इस हरी इली से उपज में भी हमे बहुत नुकसान होता है।
नियंत्रण : इस हरी इली के उपचाई में हम एक्यूरेट कम्पनी का अटैक प्लस इमामेकेटिन बेंजोएट टेक्नीकल्स 2.00% W/W बलायक 33.00% W/W मिथाइल पाईरोलीडॉन 28.70% W/W 20 से 25 ऐ मेल 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए।
फल मक्खी : इस कीट का मुख्य कार्य है फल को खाना और फल को नष्ट करना। इस कीट को ज्यादा तर फल के ऊपरी हिच्छे में मादा मक्खी अंडा देती है और इन अंडे में से चूजे निकल के फल को खाते है और फल को नुकशान पहुचाते है आखिर में फल को नष्ट कर देते है। और इस के कारण उपज में भारी गिरावाट देखने को मिलेगी। बाद में किशान को मुनाफा काफी कम मिलेगा।
नियंत्रण : इस प्रकार के किट के उपचार के लिए हम नीम सीडस करनाल एकसट्रैट 50 ग्राम को 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना चाहिए। और 8 से 10 दिन के बाद 2 से 4 बार मैलाथियॉन 40 मिली+100 ग्राम गुड़ 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना होगा।
तुलासिता : इस रोग का अटेक मटर के पतों पर दिखाई देता है और इस का अटेक पतों की उपज और निचले हिच्छे में करते है। इस रोग से पतों पीले रंग के हो जाते है और पतों के निचले हिच्छे में सफेद फफूदी लग जाती है। इस रोग से ग्रसित पौधे के विकास रूक जाता है।
नियंत्रण : इस रोग के उपचार में मैन्कोजेब और जिनेब का 30 ग्राम 16 लीटर पानी में घोल मिला के छिड़काव करना चाहिए।
चेपा : इस कीट के कारण मुख्य फसल के पतों ऊपर की दिशा में मोड़ जाते है। और पतिया पीले रंग की हो जाती है या दिखती है। इस कीट का मुख्य कार्य है पतिया में रस है वही रस को चूस लेते है। इस कारण पतिया ऊपर की दिशा में मोड़ जाती है।
नियंतरण : इस कीट के नियंत्रण के लिए हमे ए उपचार करना होगा थाइमैथोक्सम 5 ग्राम 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना होगा। और इस छिटकाव के बाद 10 से 15 दिन में डाइमैथोएट 10 मि.ली. + टराइडमोरफ 10 मिली दोनों को 16 लीटर पानी में मिलाके छिटकाव करना होगा।
फलिया छेदक इली : इस फलिया छेदक इली पौधे पर लगने से पौधे की पतों एवं फल दोनों को नुकशान पहोचाता है। और फलिया को अधिक नुकशान पहुंचाते है
नियंत्रण : इस हरी इली के उपचाई में हम एक्यूरेट कम्पनी का अटैक प्लस इमामेकेटिन बेंजोएट टेक्नीकल्स 2.00% W/W बलायक 33.00% W/W मिथाइल पाईरोलीडॉन 28.70% W/W 20 से 25 ऐ मेल 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए।
मटर में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें ?
मटर की खेती में खरपतवार नियंत्रण योग्य समय पर करना चाहिए। मटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण नहीं रखने से मटर की फसल में कई प्रकार के रोग एवं कीट अटेक करते है। और मटर के पौधे से उपज भी कम प्राप्त हो शक्ती है। मटर की खेती में खरपतवार नियंत्रण दो प्रकार से कर शकते है।
एक तो खुरपी चलाके निदाई गुड़ाई करनी चाहिए और रासायनिक दवाई प्रेटीलाफ्लोर का इस्तेमाल कर के खरपतवार नियंत्रण कर शकते है।
मटर की सिंचाई कितने दिन में करनी चाहिए ?
मटर की फसल में कम सिंचाई की जरूरत होती है। मटर की खेती ज्यादा तर शर्दी के मौसम में की जाती है इस लिए ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। मटर की खेती में जब पौधे पर फूल और फलिया में दाने बनने लगे तब मटर के पौधे को सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है।
इस लिए तब सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। और जब भी मटर की फसल में सिंचाई करे तब सिंचाई हलकी करे ज्यादा जल भराव से मटर के पौधे को नुकशान कारक होता है।
मटर की उपज कितनी होती है ?
मटर की खेती कम समय में अधिक मुनाफा के लिए किशान करते है। मटर की खेती एक हेक्टर में की जाए तो 80 से 85 किलोग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है। और इन के उपज की बात करे तो एक हेक्टर में से 30 से 35 क्विंटल तक की प्राप्त हो शक्ती है।
मटर की फसल में विविध किस्मे की कटाई विविध समय पर की जाती है कई किस्मे की कटाई 80 से 90 दिन के बाद तो कई किस्मे की कटाई 90 से 120 दिन के बाद कर शकते है।
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FAQ’s
Q-1. मटर की फसल कौन से महीने में की जाती है ?
Answer : मटर की फसल अक्टूबर महीने में और नवंबर महीने में की जाती है
Q-2. मटर के पौधे कितने दिन में पक के तैयार हो जाते है ?
Answer : मटर के पौधे 60 से 70 दिन में कच्चे हरे मटर की फलिया तोड़ाई के लिए तैयार हो जाते है और पूरी तरह से पक ने में 90 से 120 दिन लगते है
Q-3. एक बीघा में मटर का बीज कितना पड़ता है ?
Answer : मटर के बीज एक बीघा में लगभग 6 से 7 किलोग्राम बीज काफी है
Q-4. मटर की खेती में तापमान कितना अनुकूल आता है ?
Answer : मटर की खेती में 8°C से केलर 25°C तक का तापमान अनुकूल आता है
Q-5. मटर की बुवाई कैसे किया जाता है ?
Answer : मटर की बुवाई कृषि यंत्र की मदद लेकर की जाती है
सारांश
नमस्ते किशान भाइयो इस आर्टिकल के माध्यम से आप को मटर में कौन सा खाद देना चाहिए? (Matar Me kon Sa Khad Dena Chahia) और कितना देना चाहिए। इस के बारे में बारीक़ से जानकारी मिलेगी और मटर की खेती के लिए कैसी मिट्टी की पसंदगी करनी चाहिए।
मटर के पौधे को कैसा जलवायु एवं तापमान अनुकूल आता है, मटर की उन्नत (प्रसिद्ध) किस्मे कौन कौन सी है, मेथी की खेती एक हेक्टर में करे तो कितनी उपज प्राप्त कर शकते है। बात करे तो मटर की फसल की सारी जानकारी इस आर्टिकल में मिल जाएगी।
हमे पता है की ए आर्टिकल आप को मटर की खेती के लिए बहुत हेल्पफुल होगा। और ए आर्टिकल आपको बहुत पसंद भी आया होगा इस लिए इस आर्टिकल को अपने संबंधी एवं मित्रो और किशान भाई को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। इस आर्टिकल के अंत तक बने रहने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद
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