औषधीय पौधा कलिहारी की वैज्ञानिक खेती कैसे करे|कलिहारी की खेती में काफी मुनाफा है|Kalihari Ki Kheti

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हैल्लो मेरे प्यारे किशान भाईओ आज हम कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। कलिहारी को ग्लोरिओसा सुपर्बा नाम से भी जानते है और एक अग्निशिखा के नाम से भी जाने जाते है।

कलिहारी के औषधि गुन मानव शरीर में कई रोग के इलाज में खुबज उपयोगी है। कलिहारी बेल के आकर में बढ़ते है। इस के पुष्प (फूल) गांठे, पत्तिया, बीज, और जमीन में मौजूद जड़ो ओषधिक दवाई में बहुत उपयोग में लेते है।

कलिहारी के फूल देखने में खुबज आकर्षित होते है। इस के फूल गहरे लाल और पीले रंग के होते है। और कई फूल तो नारंगी रंग के और पीले रंग के भी होते है।

कलिहारी को खेतो में मेढ़ो पे और कई जंगल में भी दिखाई देते है। ए कनिहारी जंगल और कई जाड़िओ में तो प्राकृतिक रूप से उगती है। इस कलिहारी के ओशोधिक गुण के कारण आज कलिहारी की मांग बढ़ती जाती है।

जब मांग बढ़ती जाती है तब किशान ज्यादा मुनाफा के हेतु कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) कर रहे है। कलिहारी की खेती में कम समय में अधिक मुनाफा कैसे करे

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) आज के ज़माने में किशान बड़े पैमाने में कर रहे है। इस कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) विविध देश में की जाती है।

इन में से भारत, नेपाल, अफ्रीका, ऐशिया, श्रीलंका, थाईलैण्ड, सूडान, केन्या, नामीबिया, और भी कही देशो में कलिहारी की खेती की जाती है।

हमारे देश भारत के कई राज्य में भी कलिहारी की खेती करते है जैसे की तमिलनाडु, कर्नाटक, और भी कई राज्यों में कलिहारी की खेती की जाती है। इस कनिहारी को वर्षा ऋतु में फूल, फल, आते है और शीत ऋतु में बेल की लता धीरे धीरे सूखने लाती है।

कलिहारी से जो दवाई बनाई जाती है वही दवाई से जड़ो के दर्द एवं एंटीहेलमैथिक, ऐंटीपेट्रिओटिक इन सब के इलाज में उपयोग में लेते है और पॉलीप्लोइडी को भी ठीक करने में काफी मददगार साबित होते है।

इसी लिए तो कलिहारी को जड़ी बूटी भी कहते है। कलिहारी में से कई प्रकार के दवाई और टॉनिक बनाते है। इस पौधे की उचाई लगभग 4.5 से 7.5 मीटर होती है और इस के पतों की लम्बाई 5 से 8 इंच होती है इस पौधे में बीज की मात्रा अधिक होती है।

जब सर्दी के मौसम आते है तब कलिहारी का पौधा सुख जाता है और जब बारिश का मौसम आता है तब जमीन में मौजूदा कलिहारी के जड़ो अंकुरित हो के फिर से उगते है।

Kalihari-Ki-Kheti

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) आज के ज़माने में कर के अच्छा मुनाफा प्राप्त कर शकते है। इस लिए आज के इस आर्टिकल में हम कलिहारी के बारे में विस्तार से जानेगे। कलिहारी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, तापमान और वातावरण, उन्नत किस्मे (वेराइटी),

कलिहारी की बुवाई कैसे और कब करे, खरपतवार, देखभाल, और कलिहारी के फसल में लगने वाले रोग एवं कीट, कलिहारी के पौधे से उपज कितनी मिलती है, बात करे तो कलिहारी की खेती की सारी जानकारी इस आर्टिकल में मिलजायगी और बताई जाएगी।

अगर आप कलिहारी की खेती करना चाहते है तो इस माहिती के सहारे अच्छे से कर शकते है, और कम वक्त में अच्छा मुनाफा पा शकते है। इस लिए इस आर्टिकल में अंत तक बने रहे धन्यवाद।

Table of Contents

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) Overview

आर्टिकल का नामकलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti)
इस आर्टिकल का उदेश्यकिशान भाई ओ को कलिहारी की खेती में मदद मिले
प्रसिद्ध वेराइटीग्लोरिओसा सुपर्बा (Gloriosa Superba),ग्लोरिओसा राथ्सचील्डीयना (Gloriosa Rathschildiana)
बुवाई कब और केसे करेजुलाई और अगस्त माह में जड़ो की गांठो द्वारा
पंक्ति से पंक्ति की दुरी60X45 सेंटीमीटर की दुरी
तापमान और वातावरण20℃ से लेकर 35℃
खाद कौन सा डालेवर्मीकम्पोस्ट, सड़ा हुआ गोबर, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश
आने वाले रोग एवं कीटजड़ गलन, पतों पर धब्बे, हरी सुंडी, और रंग बे रंगी सुंडिया
एक हेक्टरमे उपजएक साल में एक हेक्टर मे से बीज 300 से 350 छिलके 180 से 210 किलोग्राम
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कलिहारी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और तैयारी कैसे करे?

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में उपयुक्त मिट्टी में लाल दोमट मिट्टी और बात करे तो रेतीली मिट्टी में कलिहारी के पौधे अच्छे से विकास करते है और फूल फल भी अच्छे से वृद्धि करते है। कलिहारी की अच्छी पैदावार के हेतु लाल दोमट या तो रेतीली मिट्टी में ही इस की बुवाई करनी चाहिए।

लाल दोमट और रेतीली मिट्टी में पानी आसानी से जमीन में उतर जाता है। इस लिए इस प्रकार की जमीन में जल निकासी अच्छे से होती है। और जमीन की नमी बनी रहने के हेतु योग्य समय सिंचाई भी करनी होगी।और इस की खेती सख्त मिट्टी में नहीं करनी चाहिए।

जीस जमीन में आप कलिहारी की खेती करना चाहते है इस जमीन का P.H मान 4.5 से लेकर 7 के बिच होना चाहिए।

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में जमीन तैयारी जुलाई और अगस्त माह में आप ट्रेक्टर की मदद से गहरी जुताई एक से तीन बार करनी चाहिए। जमीन को अच्छे से भुरभुरी करने के लिए आप रोटावेटर की मदद भी ले शकते है।

जमीन को समतल करने के लिए आप पट्टा भी लगा शकते है। और आखरी जुताई से पहले वर्मीकम्पोस्ट या अच्छे से सड़ा हुआ गोबर एक हेक्टर में 12 से 15 टन डालके मिट्टी में अच्छे से मिला देना चाहिए। इस के आलावा भी नाइट्रोजन, पोटाश, एवं फास्फोरस भी जरूरी मात्रा में दे शकते है।

कलिहारी की गांठो या बीज की बुवाई कर शकते है। और एक बात का ध्यान रखे की जीस मिट्टी में कलिहारी की बुवाई की है वही जमीन की जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।

तापमान और जलवायु (Kalihari Ki Kheti)

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) को 20℃ से लेकर 35℃ या 40℃ तापमान में कनिहारी के पौधे अच्छे से वृद्धि करते है। और वार्षिक बारिश 80 से.मी. से 160 से.मी. तक की होनी चाहिए। और जमीन की जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।

कलिहारी की खेती में जल निकास अच्छे से करने के लिए जमीन तैयारी में पट्टा चलाना होगा और जीस जमीन में जल निकासी अच्छी नहीं है इस जमीन में कलिहारी की खेती नहीं करनी चाहिए।

कलिहारी की उन्नत किस्में (वेराइटी)

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में उन्नत किस्मे या प्रसिद्ध किस्मे दो है इस किस्मे के नाम एक तो ग्लोरिओसा सुपर्बा (Gloriosa Superba) और ग्लोरिओसा राथ्सचील्डीयना (Gloriosa Rathschildiana)

इन दोनों में से भारत में ग्लोरिओसा सुपर्बा (Gloriosa Superba) किस्मे प्रसिद्ध है और इस किस्मे की खेती हमारे देश में सबसे ज्यादा करते है किशान भाई। और इस किस्मे की माहिती निचे मुजब है

ग्लोरिओसा सुपर्बा (Gloriosa Superba) : इस उन्नत किस्मे की खेती अफ्रीका एवं भारत और विविध देश में सबसे ज्यादा की जाती है। इस के पौधे की ऊंचाई1 से 2 मीटर तक की होती है।

इस के पत्तिया अंडा आकर के होते है और इस पतों की लम्बाई 11 से लेकर 13 से.मी. तक की हो शक्ती है। इस किस्मे के फूल बहुत लम्बे और गहरे लाल एवं पीले रंग के होते है।

ग्लोरिओसा राथ्सचील्डीयना (Gloriosa Rathschildiana) : इस प्रसिद्ध किस्मे को अफ्रीका के उष्ण क्षेत्रों में सबसे ज्यादा किशान बुवाई कर के अच्छी उपज भी प्राप्त करते है।

किस्मे को बेल और लम्बी होती है। इस के पत्तिया लम्बी और लम्बाई 15 से लेकर 19 सै.मी. की होती है। इस किस्मे के फूल लम्बे और सफ़ेद एवं पीले रंग के होते है

बुवाई कैसे करे? बीज या गांठो की मात्रा (Kalihari Ki Kheti)

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में कलिहारी की बुवाई जुलाई और अगस्त माह में सब से उत्तम माना जाता है। इस के पौधे पनीरी वाले पौधे है इसी लिए 45X60 सै.मी. की दुरी रखनी चाहिए। इस माना से एक हेक्टर में 37050 पंक्ति लगा शकते है।

कलिहारी के पौधे की जमीन में गहराई 6.5 से 8.5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। कलिहारी खेती के लिए आप गांठो की बुवाई (रोपाई) कार शकते है। और बीजों में से पनीरी तैयार करके बुवाई कर शकते है।

कलिहारी की खेती अगर आप एक हेक्टर में करना चाहते है तो एक हेक्टर के हिसाब से गांठो कम से कम 25 से 30 क्विंटल गांठो की आवश्कता हो शक्ती है।

कलिहारी के बुवाई से पहेले इन गांठो का योग्य दवाई का उपयोग कर के गांठो के अच्छे से उपचार कर लेना चाहिए। बाद में मुख्य खेत में कलिहारी की बुवाई करनी चाहिए।

खरपतवार कैसे करे? (Kalihari Ki Kheti)

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में खरपतवार नियंत्रण रखना खुबज जरूरी है। जब निंदन ज्यादा हो जाता है तब मुख्य फसल की विकास रूक जाती है। और उपज एवं पैदावार भी कम हो जाती है। बाद में किशान को भारी नुकशान भुगतना पड़ता है।

इस लिए जब भी मुख्य फसल में घास फुस दिखे तब खरपतवार कर के मुख्य फसल को निंदन मुक्त करनी चाहिए। खरपतवार आप दो तरीके से कर शकते है एक तो हाथ से खुरपी चलाके और रासायनिक दवाई का इस्ते माल कर के खरपतवार नियंत्रण कर शकते है।

लेकि हम तो सारे किशान भाईओ को सुझाव देते है की खरपतवार हंमेशा खुरपी से ही करे क्यों की रासायनिक दवाई से खरपतवार करने से जमीन का उपजाव P.H मान धीरे धीरे कम हो जाती है।

इस लिए खुरपी से खरपतवार करे इस में जमीन की उपजाव शक्ती बनी रहती है और जो भी फसल की बुवाई करे उपज बेहतर मिलती है।

देखभाल कैसे करे? (Kalihari Ki Kheti)

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में देखभाल तो आप योग्य समय में सिंचाई करते रहना चाहिए। जब कोई रोग एवं कीट का अटेक हो तब योग्य दवाई का छिटकाव कर के पौधे को रोग एवं कीट मुक्त करना चाहिए।

जब पौधे में फूल अंकुरित होते है तब सिंचाई के साथ कई खाद भी देना चाहिए। खाद से पैदावार में बड़ोतरी होती है और किशन को भारी मात्रा में मुनाफा भी हो शकता है।

इस के आलावा पौधे को निंदन मुक्त रखे योग्य समय खरपतवार कर के इस प्रकार कलिहारी की खेत में आप देखभाल कर शकते है।

सिंचाई कब करनी चाहिए? (Kalihari Ki Kheti Me)

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) रेतीली मिट्टी में की जाती है और कनिहारी की खेती में सिंचाई की जरूरत बहुत कम होती है। कलिहारी के पौधे में जब फूल फल दिखाई दे तब सिंचाई की जरूरत होती है

वही फूल फल बड़े हो जाए और पकजा ने के समय पर सिंचाई नहीं करनी चाहिए कलिहारी के फूल फल ज्यादा सिंचाई से जमीन पर गीर जाते है। और जब कटाई करनी है तब तो कटाई के पहेले सिंचाई बंध कर देनी चाहिए।

खाद कोन सा और कब देना चाहिए?

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में अच्छी उपज या अच्छी पैदावार लेने के लिए योग्य समय पर खाद देना बेहद जरूरी है। खाद में वर्मीकम्पोस्ट, अच्छे से सड़ा हुआ गोबर, नाइट्रोजन, फास्फोरस,एवं पोटाश दे शकते है।

इस प्रकार के खाद देने से उपज में एवं कलिहारी के पौधे की वृद्धि अच्छी होती है।

  • वर्मीकम्पोस्ट और गोबर : एक हेक्टर के हिसाब से आप 12 से 15 टन दे शकते है। जब जमीन की तैयारी करे है तब भी दाल के आखरी जुदाई कर शकते है।
  • नाइट्रोजन : नाइट्रोजन पौधे को वातावरण में से 80% किलता है और 4% पानी के माध्यम से मिलता है। इस के आलावा एक हेक्टर में हम 80 से 100 किलो नाइट्रोजन डाल शकते है। नाइट्रोजन का मुख्य कार्य है पौधे का अच्छे से विकास करना।
  • फास्फोरस : हम एक हेक्टर में फास्फोरस 35 से 40 किलो डाल शकते है। इस का माप जमीन की H.P मान के डालना चाहिए। इस तत्व का मुख्य कार्य है पौधे पर फूल का विकास, फल का विकास और पौधे में रोग प्रति कारक शक्ती की बड़ोतरी करना। इस के आलावा भी ए तत्व कार्य करते है फल के आकर को बढ़ाता है।
  • पोटाश : हम एक हेक्टर में पोटाश 40 से 45 किलो डाल शकते है। इस तत्व का मुख्य कार्य है पौधे के जड़ो का विकास करना और कई रोग एवं कीट से पौधे को बचता है। जब किसी भी पौधे की जड़ मजबूती से जमीन के साथ जुड़ जाती है। पोटाश देने से पौधे की कोशिका की दीवारे मजबूत होती है और लता तेजीसे लम्बी होती है।

लगने वाले रोग एवं कीट नियंत्रण

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में कई कीट अटेक करते है और जब भी कोई रोग एवं कीट का अटेक दिखाई दे तुरंत कोई योग्य दवाई का छिटकाव कर के पौधे को रोग एवं कीट से मुक्त कीजिए। वार्ना सारी फसल बिगड़ जाती है।

रोग या कीट ग्रस्त पौधे ज्यादा पैदावार नहीं देते और पौधे की अच्छी विकास भी नहीं हो शक्ती। इस में उपज कम के कारण ज्यादा नुकशान और कम मुनाफा किशान को मिलेगा। इस लिए जब कोई रोग एवं कीट का अटेक दिखे तब जल्द योग्य दवाई का छिटकाव करे।

कनिहारी की खेती में ज्यादातर दिखने वाले रोग एवं कीट इस प्रकार के दिखते है। जड़ गलन, पतों पर धब्बे, हरी सुंडी, और रंग बे रंगी सुंडिया, ऐसे रोग एवं कीट कलिहारी की खेती में दीखते है इस रोग एवं कीट के नियंतरण भी इस प्रकार कर शकते है।

  • जड़ गलन : इस रोग का अटेक पौधे के जड़ो में होता है। इस रोग के कारण पौधे की जड़ो गल के सड़ जाती है। जब इस रोग से पौधा ग्रस्त हो जाता है तब पौधे की जड़ो कमजोर हो जाती है बाद में पौधा जमीन में से जरूती पोषक तत्व नहीं ले पाते और धीरे धीरे पौधा सूखने लगता है और एक दिन सुख के नष्ट हो जाता है।
  • नियंत्रण : इस रोग नियंतरण के लिए कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50% WP एक हेक्टर दीठ एक किलोग्राम 400 लीटर पानी के साथ घोल मिला के पत्येक पौधे को 50 मिली ग्राम सिंचाई के माध्यम से देना चाहिए। और इस बीमारी से पौधे को मुक्त करना चाहिए।
  • पतों पर धब्बे : इस बीमारी की पैथोजेनिक बीमारी भी कहते है। इस का अटेक मुख्य तवे पौधे के पतों पर होता है। इस के कारण पौधे के पतों पर छोटे छोटे छिद्र और पतों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है। और धीरे धीरे पौधे के सारे पते गीर के नष्ट हो जाते है
  • नियंत्रण : इस रोग के नियंतरण में हम दीथेन एम 45 0.3 % एवं कोटफ 10 मि.ली 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए।
  • हरी सुंडी : इस सुंडी से कनिहारी के पौधे को ज्यादा नुकशान होता है। इस सुंडी का कार्य है पौधे के ताजे हरे और नाइ अंकुरित लता को खाते है। और पौधे का विकास रूक जाता है।
  • नियंत्रण : इस हरी सुंडी के नियंतरण में हम यूपीएल कम्पनीका उलाला फलेको मिड 50% SG 7 से 8 ग्राम 16 लीटर पानी के साथ 15 दिन में दो से तीन छिटकाव करना चाहिए।
  • रंग बे रंगी सुंडिया : इस सुंडी को पौधे के पतों एवं फूल फल सभी के ऊपर अटेक करते है। इस का कार्य है पतों को खाना फूल फल को खाना और नष्ट करना। इस के कारण किशान को भारी नुकशान भुगतना पड़ता है।
  • नियंत्रण : इस सुंडी का नियंत्रण जल्द करना चाहिए इस के उपचार में आप एक्यूरेट कम्पनी का अटैक प्लस इमामेकेटिन बेंजोएट टेक्नीकल्स 2.00% W/W बलायक 33.00% W/W मिथाइल पाईरोलीडॉन 28.70% W/W 20 से 25 मिलीग्राम 16 लीटर पानी में मिला के छिटकाव करना चाहिए।

उपज एवं कटाई कब करे?(Kalihari Ki Kheti)

कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) 180 से 190 दिन की होती है। कनिहारी के फूल फल एवं गांठो औषोधिक दवाई बना ने के काम आते है। फल के बीज एवं फल के ऊपरी छिल्के दोनों दवाई में काम आते है। इस के अलावा कटाई के बाद जमीन में से गांठो को निकाल लिए जाता है

इन गांठो को अच्छे से पानी से फास करते है। इस के बाद गांठो, फूल, फल के बीज कुछ दिनों तक छाव में सुखाया जाता है। इस गांठो को और फल के बीजो को लम्बे समय तक अच्छे से रखने के लिए हवा रहित पेकिंग में पैक करते है।

इस गांठो और फल फूल बीज से कई टॉनिक और दवाई बना के मानव शरीर के लिए उपयोग में लेते है। कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में उपज की बात करे तो कलिहारी की खेती एक हेक्टर के हिसाब से की है।

कलिहारी के बीज की मात्रा आपको 300 से लेकर 350 किलोग्राम बीज प्राप्त होगा। और फल के ऊपरी छिलके की बात करे तो 180 से लेकर 210 किलोग्राम छिलके प्राप्त होते है।

कलिहारी के गांठो की बात करे तो अगर हम 4 से 5 साल कलिहारी की खेती कर के गांठो का हिसाब करे तो 2 से 3 टन सूखे गांठो मिलेगी। इस कलिहारी के फल के छिलके का बाजार भाव एक किलोग्राम के 1050 से 1250 रूपए तक मिलते है।

इन के सूखे गांठो का बाजार भाव एक किलोग्राम के 600 से लेकर 800 रूपए मिलते है। इस प्रकार के बाजार भाव के हिसाब से पांच साल में एक हेक्टर की कलिहारी से कम से कम 40 लाख का और ज्यादा से ज्यादा 50 से 55 लाख का मुनाफा किशान कलिहारी की खेती कर के पा शकते है। इस लिए आज कल कलिहारी की खेती की तरफ किशान का ध्यान बढ़ता जाता है।

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FAQ’s

Q-1. कलिहारी के खेती कब की जाती है ?

Answer : कलिहारी की खेती जुलाई और अगस्त माह में जड़ो की गांठो द्वारा की जाती है और इस माह में उत्तम भी मानी जाती है

Q-2. कलिहारी के उन्नत किस्मे (प्रसिद्ध किस्मे) कौन कौन सी है ?

Answer : कलिहारी की उन्नत किस्मे (प्रसिद्ध किस्मे) दो है एक ग्लोरिओसा सुपर्बा (Gloriosa Superba) और ग्लोरिओसा राथ्सचील्डीयना (Gloriosa Rathschildiana) है

Q-3. कलिहारी के फूल का रंग केसा होता है ?

Answer : कलिहारी के फूल गहरा लाल और पीले रंग के होते है और कई किस्मे की फूल केसरी और पीले रंग के होते है

Q-4. कलिहारी के पौधे कितने दिन में पक के तैयार हो जाते है ?

Answer : कलिहारी के पौधे 180 से 190 दिन में फूल फल पक के तैयार हो जाते है और इस के बाद कटाई कर के गांठो को अच्छे से पानी से साफ कर के सुखाई जाते है

Q-5. कलिहारी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (मिट्टी की पसंदगी) कैसी होनी चाहिए ?

Answer : कलिहारी की खेती के लिए उपयुक्त या मीट्टी की पसंदगी लाल दोमट या तो रेतीली मिट्टी में सब से अच्छे से कलिहारी के पौधे विकास करते है और उपज भी अच्छी प्राप्त होते है

सारांश

नमस्ते किशान भइओ इस आर्टिकल के माध्यम से आपको कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में इस के बारे में बहुत कुछ जननेको मिलेगा और कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में कोन कोन सी वेराइटी अच्छी हे।

कलिहारी कैसे और कब बुवाई करे कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) में कोन कोन सा खाद डालना चाहिए। कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) के पौधे पे लगने वाला रोग एवं कीट इन रोग और कीट से नियंत्रण कैसे करे एवं कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) की उपज एवं कलिहारी कैसे करे।

वैसे बात करे तो कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) के वारे में इस आर्टिकल में आपको बहुत कुछ जानने को मिला होगा। इस लिए ए आर्टिकल आपको कलिहारी की खेती (Kalihari Ki Kheti) करने में बहुत हेल्प फूल होगा।

इस लिए हमें पता हे की ए आर्टिकल आप को बेहद पसंद आया होगा। इस लिए ए आर्टिकल को आप अपने किशान भाइओ के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। इस आर्टिकल में अंत तक बने रहने के लिए आपका धन्यवाद

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नमस्कार किसान मित्रो, में Mavji Shekh आपका “iKhedutPutra” ब्लॉग पर तहेदिल से स्वागत करता हूँ। मैं अपने बारे में बताऊ तो मैंने अपना ग्रेजुएशन B.SC Agri में जूनागढ़ गुजरात से पूरा किया है। फ़िलहाल में अपना काम फार्मिंग के साथ साथ एग्रीकल्चर ब्लॉग पर किसानो को हेल्पफुल कंटेंट लिखता हु।

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